किसान संगठन के अध्यक्ष ने बताया, ‘दिल्ली चलो’ मार्च का आह्वान, मूल रूप से पंजाब के तीन चार संगठनों की तरफ से हुआ है। हरियाणा से भी दो तीन संगठन बताए जा रहे हैं। इनमें से एक संगठन ‘पंजाब किसान मजदूर संघर्ष समिति’ है……..
साल 2020-21 के दौरान हुए किसान आंदोलन में एक साल से अधिक समय तक दिल्ली में डटे रहने वाले प्रमुख किसान नेता एवं संगठन, इस बार दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। उस वक्त संयुक्त किसान मोर्चो ‘एसकेएम’ के बैनर तले 35 किसान संगठन (बड़े) और 400 से ज्यादा छोटे संगठन, दिल्ली पहुंचे थे। प्रमुख किसान संगठनों में से 31 तो अकेले पंजाब से थे। कुछ संगठन हरियाणा और मध्यप्रदेश से थे। इस बार किसानों के ‘दिल्ली चलो’ मार्च में पांच-सात संगठन ही शामिल हैं। खास बात है कि एसकेएम, खुद इस मार्च में ज्यादा सक्रिय नहीं है। एसकेएम ने 16 फरवरी को ग्रामीण भारत बंद और औद्योगिक बंद का आह्वान कर रखा है। ये अलग बात है कि ‘दिल्ली चलो’ मार्च में सैकड़ों संगठनों के शामिल होने का दावा किया जा रहा है।
संयुक्त किसान मोर्चा के अहम घटकों में शामिल रहे एक संगठन के अध्यक्ष ने इस पर विस्तृत बातचीत की है। इस संगठन के साथ किसानों के अलावा खेत मजदूर भी जुड़े हैं। उन्होंने यह बात स्वीकार की है कि ‘दिल्ली चलो’ मार्च को लेकर किसान संगठनों में सर्वसम्मति का अभाव रहा है। इस स्थिति में ऐसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि किसान संगठनों की इस कमजोरी को, कहीं केंद्र सरकार अपनी ताकत न बना ले।
इन संगठनों ने उठाया है ‘दिल्ली चलो’ का बीड़ा
किसान संगठन के अध्यक्ष ने बताया, ‘दिल्ली चलो’ मार्च का आह्वान, मूल रूप से पंजाब के तीन चार संगठनों की तरफ से हुआ है। हरियाणा से भी दो तीन संगठन बताए जा रहे हैं। इनमें से एक संगठन ‘पंजाब किसान मजदूर संघर्ष समिति’ है। इसके महासचिव सरवन सिंह पंढेर हैं। यह वही संगठन है, जिसने 26 जनवरी 2021 को लालकिले में घुसकर उपद्रव मचाया था। लाल किला की प्राचीर पर चढ़कर तिरंगे का अपमान किया गया था। पंढेर, सरकार के साथ हुई बातचीत में भी शामिल रहे हैं। दूसरा संगठन, भारतीय किसान यूनियन (एकता सिंधुपुर) के अध्यक्ष जगजीत सिंह डल्लेवाल का है। डल्लेवाल भी पहले एसकेएम में शामिल रहे हैं। बाद में इन्होंने अपना एक अलग संगठन खड़ा कर लिया। क्रांतिकारी किसान यूनियन भी दिल्ली चलो मार्च में शामिल है। हरियाणा से बीकेयू (शहीद भगत सिंह) अंबाला, एसकेएम (बलदेव सिंह सिरसा) अमृतसर, लखविंद्र सिंह का एक छोटा समूह और फतेहाबाद में खेती बचाओ संगठन से जुड़े रहे सरपंच जरनैल सिंह शामिल हैं। भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी संगठन के अध्यक्ष सुरजीत सिंह फूल का संगठन दिल्ली चलो मार्च में हिस्सा ले रहा है। सुरजीत सिंह फूल, उन 25 किसान नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने कृषि कानूनों पर सरकार के साथ चर्चा की थी। पंजाब में पीएम मोदी का काफिला रोकने की जिम्मेदारी भी इसी संगठन ने ली थी।
सरकार तुरंत बातचीत के लिए तैयार हो गई
किसान संगठन के अध्यक्ष बताते हैं, 2020 में जब किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाला था, तब सरकार ने बातचीत में काफी आनाकानी की थी। कभी तो अफसरों को ही आगे कर दिया गया। इस बार सरकार ने दो केंद्रीय मंत्री, अर्जुन मुंडा और पीयूष गोयल को तुरंत बातचीत के लिए भेज दिया। 2020 में शुरू हुए आंदोलन के दौरान पंजाब के डॉक्टर दर्शनपाल, जो क्रांतिकारी किसान यूनियन के साथ जुड़े थे, वे 30 अन्य किसान संगठनों के समन्वयक भी थे। इस बार ये भी दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) की सक्रियता भी उतनी नहीं है। पंजाब के मालवा क्षेत्र में सक्रिय रहे बीकेयू (एकता उगराहां), भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक नेताओं में से एक और बीकेयू (राजेवाल) संगठन के संयोजक बलबीर सिंह राजेवाल भी सक्रिय नहीं हैं। राकेश टिकैत मीडिया में बयान दे रहे हैं कि दिल्ली में ट्रैक्टर ले जाएंगे। गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव, अविक साहा, भारतीय किसान यूनियन लक्खोवाल के अध्यक्ष अजमेर सिंह लक्खोवाल, किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के सतनाम सिंह पन्नू, जम्हूरी किसान सभा के प्रेसिडेंट सतनाम सिंह अजनाला, महिला किसान अधिकार मंच की संस्थापक सदस्य कविता कुरुगंटी और राष्ट्रीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक शिवकुमार शर्मा उर्फ ‘कक्का’ जी भी दिल्ली मार्च को लेकर सक्रिय नहीं हैं। अखिल भारतीय किसान खेत मजदूर संगठन के पदाधिकारी भी दिल्ली चलो मार्च से दूरी बनाए हैं। हालांकि इन संगठनों ने किसानों की मांगों का समर्थन किया है।
किसान संगठनों के बीच सामंजस्य का अभाव
खेत मजदूर संगठन के पदाधिकारी बताते हैं, संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले 26 नवंबर 2020 को शुरू हुआ आंदोलन, 378वें दिन में समाप्त हुआ था। हालांकि उस आंदोलन में 700 से ज्यादा किसानों ने अपनी जान गंवाई थी। उसके बाद हालात बदल गए हैं। किसानों के कई संगठन एवं पदाधिकारी सियासत में हाथ आजमाने को आतुर हैं। पर्दे के पीछे विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ किसान संगठनों की बातचीत होने लगी। ऐसे में केंद्रीय स्तर पर एसकेएम भी कमजोर पड़ गया। मध्यप्रदेश के किसान संगठन, जिसके संयोजक शिव कुमार कक्का हैं, उन्होंने 26 जनवरी को देशभर में जिला स्तर पर ट्रैक्टर के जरिए विरोध प्रदर्शन की बात कही। इस पर एसकेएम सहमत नहीं था। नतीजा, ये आह्वान फ्लॉप हो गया। उसके बाद तय हुआ कि एसकेएम 16 फरवरी को भारत बंद करेगा। हालांकि यहां पर भी ग्रामीण भारत और औद्योगिक प्रतिष्ठानों के बंद करने की बात कही गई। इस बीच पंजाब व हरियाणा के किसान संगठनों ने 13 फरवरी को दिल्ली मार्च का एलान कर दिया। इस कॉल के बाद सरकार भी तुरंत बातचीत के लिए राजी हो गई। मध्यप्रदेश से जुड़े किसान संगठन के एक पदाधिकारी, आरएसएस के करीबी रहे हैं। ऐसे में किसान आंदोलन की दशा और दिशा, तय होने में दिक्कतें आना लाजमी हैं। जब 16 फरवरी के भारत बंद की कॉल, एसकेएम ने की है तो 13 फरवरी के दिल्ली कूच को बीच में क्यों लाया गया।
तब 23 संगठनों को निलंबित कर दिया गया
दिल्ली में 2020-21 के किसान आंदोलन से जुड़े कई संगठनों ने पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी। इस बात पर ‘संयुक्त किसान मोर्चे’ के पदाधिकारियों और किसान संगठनों के बीच टकराहट बढ़ने लगी थी। पंजाब के किसान संगठनों का कहना था कि संयुक्त किसान मोर्चा, ‘एसकेएम’ ने 23 संगठनों को निलंबित कर दिया, जबकि उनमें से केवल 8 संगठन ही सीधे तौर पर चुनाव में कूदे थे। उस वक्त किसान नेताओं का कहना था, अगर किसी ने एसकेएम के नियमों का उल्लंघन किया है, तो उसकी सजा व्यक्ति को मिलनी चाहिए न कि संगठन को। एसकेएम के इस निर्णय के खिलाफ पंजाब के दो दर्जन से अधिक किसान संगठनों ने समन्वय समिति की बैठक बुलाने की मांग की थी। उस वक्त पंजाब के किसान संगठनों द्वारा गठित राजनीतिक दल ‘संयुक्त समाज मोर्चा’, का नेतृत्व बलबीर सिंह राजेवाल कर रहे थे। इनके साथ भारतीय किसान यूनियन, हरियाणा के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी की ‘संयुक्त संघर्ष पार्टी’ भी सक्रिय हो गई। ‘संयुक्त समाज मोर्चा’ ने सौ से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए।
योगेंद्र यादव व चढ़ूनी भी हुए थे निलंबित
इससे पहले किसान आंदोलन के दौरान एसकेएम ने तय किया था कि कोई भी सदस्य किसी राजनीतिक प्लेटफार्म पर नहीं जाएगा। न ही किसी राजनेता को एसकेएम के मंच पर जगह मिलेगी। आंदोलन खत्म होने के बाद एसकेएम ने कहा था कि मोर्चे का नाम किसी भी राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं किया जाएगा। अगर कोई सदस्य इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे निलंबन का सामना करना पड़ेगा। जब पहली बार गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने चुनाव लड़ने की बात कही, तो उन्हें कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया गया था। इसके बाद योगेंद्र यादव जब लखीमपुर खीरी में भाजपा के एक कार्यकर्ता के घर पर गए तो उन्हें भी एक माह तक निलंबित कर दिया गया था। दिल्ली मार्च को लेकर पंजाब के ‘किसान मजदूर संघर्ष कमेटी’ के अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सभरा का दावा है कि करीब 200 किसान यूनियनें दिल्ली की तरफ मार्च कर रही हैं। इसके लिए 9 राज्यों की किसान यूनियनों से संपर्क किया जा रहा है।