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बिहार में भारत-नेपाल सीमा पर 10 भूमि सीमा शुल्क स्टेशन बनेंगे : अमित शाह

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार के अररिया जिले में जोगबनी इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट के पास भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण के नवनिर्मित आवासीय भवन परिसर का उद्घाटन किया

जोगबनी (अररिया): 

केंद्र सरकार ने भारत और नेपाल के बीच द्विपक्षीय व्यापार में सुधार के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमा के साथ बिहार में भूमि सीमा शुल्क स्टेशन (एलसीएस) स्थापित करने के लिए 10 स्थानों को चिह्नित किया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को इसकी घोषणा की. एलसीएस दो पड़ोसी देशों के बीच यात्रा करने वाले यात्रियों और माल के लिए पारगमन, सीमा शुल्क, आव्रजन सेवाएं प्रदान करने वाली एक सुविधा है.

शाह ने कहा, “केंद्र भारत और नेपाल के बीच द्विपक्षीय व्यापार में सुधार के लिए भारत-नेपाल सीमा पर कुल 19 एलसीएस स्थापित करने की प्रक्रिया में है. इन 19 एलसीएस में से 10 बिहार में स्थापित होंगे.”

बिहार में एलसीएस गलगलिया (किशनगंज), बैरगनिया (सीतामढ़ी), भीमनगर एवं कुनौली (सुपौल), जयनगर (मधुबनी), वाल्मिकी नगर (पश्चिम चंपारण) के अलावा कुछ अन्य स्थानों पर स्थापित किए जाएंगे.

शाह ने कहा कि भारत सरकार नेपाल के साथ अपने व्यापार में सुधार के लिए तीन सिद्धांतों ‘समन्वय, सहयोग और सहभागिता’ पर काम कर रही है.

केंद्रीय गृह मंत्री बिहार के अररिया जिले में जोगबनी इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट के पास भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण (एलपीएआई) के एक नवनिर्मित आवासीय भवन परिसर का उद्घाटन करने के बाद एक समारोह को संबोधित कर रहे थे.

शाह ने कहा, “एलपीएआई पड़ोसी देशों के साथ भारत के व्यापार संबंधों को आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है और यह पड़ोसी देशों के साथ दोस्ती और भाईचारे के लिए देश के एक प्रमुख पक्ष के रूप में काम कर रहा है.”

उन्होंने जोर देकर कहा कि केंद्र ने पड़ोसियों के साथ संबंधों को बढ़ावा देने के लिए सीमा बुनियादी ढांचे, द्विपक्षीय व्यापार, लोगों से लोगों का आपसी संपर्क और गांव के विकास में सुधार के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं.

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, “बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ, जमीन पर अवैध कब्जा और अवैध व्यापार जैसे कई मुद्दे हैं. इन समस्याओं को केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर और बिना किसी तुष्टिकरण की नीति के सख्त कदमों से हल कर सकती हैं.” उन्होंने कहा कि निकट भविष्य में इन सभी मुद्दों का समाधान किया जाएगा.

उन्होंने बथनाहा में स्थित सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के आवासीय भवन परिसर का भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उद्घाटन किया.

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Farmers Protest: 2021 में 378 दिन तक डटे रहने वाले किसान नेता इस बार कहां हैं, क्यों हैं इस बार आंदोलन से दूर?

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किसान संगठन के अध्यक्ष ने बताया, ‘दिल्ली चलो’ मार्च का आह्वान, मूल रूप से पंजाब के तीन चार संगठनों की तरफ से हुआ है। हरियाणा से भी दो तीन संगठन बताए जा रहे हैं। इनमें से एक संगठन ‘पंजाब किसान मजदूर संघर्ष समिति’ है……..

साल 2020-21 के दौरान हुए किसान आंदोलन में एक साल से अधिक समय तक दिल्ली में डटे रहने वाले प्रमुख किसान नेता एवं संगठन, इस बार दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। उस वक्त संयुक्त किसान मोर्चो ‘एसकेएम’ के बैनर तले 35 किसान संगठन (बड़े) और 400 से ज्यादा छोटे संगठन, दिल्ली पहुंचे थे। प्रमुख किसान संगठनों में से 31 तो अकेले पंजाब से थे। कुछ संगठन हरियाणा और मध्यप्रदेश से थे। इस बार किसानों के ‘दिल्ली चलो’ मार्च में पांच-सात संगठन ही शामिल हैं। खास बात है कि एसकेएम, खुद इस मार्च में ज्यादा सक्रिय नहीं है। एसकेएम ने 16 फरवरी को ग्रामीण भारत बंद और औद्योगिक बंद का आह्वान कर रखा है। ये अलग बात है कि ‘दिल्ली चलो’ मार्च में सैकड़ों संगठनों के शामिल होने का दावा किया जा रहा है।

संयुक्त किसान मोर्चा के अहम घटकों में शामिल रहे एक संगठन के अध्यक्ष ने इस पर विस्तृत बातचीत की है। इस संगठन के साथ किसानों के अलावा खेत मजदूर भी जुड़े हैं। उन्होंने यह बात स्वीकार की है कि ‘दिल्ली चलो’ मार्च को लेकर किसान संगठनों में सर्वसम्मति का अभाव रहा है। इस स्थिति में ऐसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि किसान संगठनों की इस कमजोरी को, कहीं केंद्र सरकार अपनी ताकत न बना ले।

इन संगठनों ने उठाया है ‘दिल्ली चलो’ का बीड़ा

किसान संगठन के अध्यक्ष ने बताया, ‘दिल्ली चलो’ मार्च का आह्वान, मूल रूप से पंजाब के तीन चार संगठनों की तरफ से हुआ है। हरियाणा से भी दो तीन संगठन बताए जा रहे हैं। इनमें से एक संगठन ‘पंजाब किसान मजदूर संघर्ष समिति’ है। इसके महासचिव सरवन सिंह पंढेर हैं। यह वही संगठन है, जिसने 26 जनवरी 2021 को लालकिले में घुसकर उपद्रव मचाया था। लाल किला की प्राचीर पर चढ़कर तिरंगे का अपमान किया गया था। पंढेर, सरकार के साथ हुई बातचीत में भी शामिल रहे हैं। दूसरा संगठन, भारतीय किसान यूनियन (एकता सिंधुपुर) के अध्यक्ष जगजीत सिंह डल्लेवाल का है। डल्लेवाल भी पहले एसकेएम में शामिल रहे हैं। बाद में इन्होंने अपना एक अलग संगठन खड़ा कर लिया। क्रांतिकारी किसान यूनियन भी दिल्ली चलो मार्च में शामिल है। हरियाणा से बीकेयू (शहीद भगत सिंह) अंबाला, एसकेएम (बलदेव सिंह सिरसा) अमृतसर, लखविंद्र सिंह का एक छोटा समूह और फतेहाबाद में खेती बचाओ संगठन से जुड़े रहे सरपंच जरनैल सिंह शामिल हैं। भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी संगठन के अध्यक्ष सुरजीत सिंह फूल का संगठन दिल्ली चलो मार्च में हिस्सा ले रहा है। सुरजीत सिंह फूल, उन 25 किसान नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने कृषि कानूनों पर सरकार के साथ चर्चा की थी। पंजाब में पीएम मोदी का काफिला रोकने की जिम्मेदारी भी इसी संगठन ने ली थी।

सरकार तुरंत बातचीत के लिए तैयार हो गई

किसान संगठन के अध्यक्ष बताते हैं, 2020 में जब किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाला था, तब सरकार ने बातचीत में काफी आनाकानी की थी। कभी तो अफसरों को ही आगे कर दिया गया। इस बार सरकार ने दो केंद्रीय मंत्री, अर्जुन मुंडा और पीयूष गोयल को तुरंत बातचीत के लिए भेज दिया। 2020 में शुरू हुए आंदोलन के दौरान पंजाब के डॉक्टर दर्शनपाल, जो क्रांतिकारी किसान यूनियन के साथ जुड़े थे, वे 30 अन्य किसान संगठनों के समन्वयक भी थे। इस बार ये भी दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) की सक्रियता भी उतनी नहीं है। पंजाब के मालवा क्षेत्र में सक्रिय रहे बीकेयू (एकता उगराहां), भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक नेताओं में से एक और बीकेयू (राजेवाल) संगठन के संयोजक बलबीर सिंह राजेवाल भी सक्रिय नहीं हैं। राकेश टिकैत मीडिया में बयान दे रहे हैं कि दिल्ली में ट्रैक्टर ले जाएंगे। गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव, अविक साहा, भारतीय किसान यूनियन लक्खोवाल के अध्यक्ष अजमेर सिंह लक्खोवाल, किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के सतनाम सिंह पन्नू, जम्हूरी किसान सभा के प्रेसिडेंट सतनाम सिंह अजनाला, महिला किसान अधिकार मंच की संस्थापक सदस्य कविता कुरुगंटी और राष्ट्रीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक शिवकुमार शर्मा उर्फ ‘कक्का’ जी भी दिल्ली मार्च को लेकर सक्रिय नहीं हैं। अखिल भारतीय किसान खेत मजदूर संगठन के पदाधिकारी भी दिल्ली चलो मार्च से दूरी बनाए हैं। हालांकि इन संगठनों ने किसानों की मांगों का समर्थन किया है।

किसान संगठनों के बीच सामंजस्य का अभाव

खेत मजदूर संगठन के पदाधिकारी बताते हैं, संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले 26 नवंबर 2020 को शुरू हुआ आंदोलन, 378वें दिन में समाप्त हुआ था। हालांकि उस आंदोलन में 700 से ज्यादा किसानों ने अपनी जान गंवाई थी। उसके बाद हालात बदल गए हैं। किसानों के कई संगठन एवं पदाधिकारी सियासत में हाथ आजमाने को आतुर हैं। पर्दे के पीछे विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ किसान संगठनों की बातचीत होने लगी। ऐसे में केंद्रीय स्तर पर एसकेएम भी कमजोर पड़ गया। मध्यप्रदेश के किसान संगठन, जिसके संयोजक शिव कुमार कक्का हैं, उन्होंने 26 जनवरी को देशभर में जिला स्तर पर ट्रैक्टर के जरिए विरोध प्रदर्शन की बात कही। इस पर एसकेएम सहमत नहीं था। नतीजा, ये आह्वान फ्लॉप हो गया। उसके बाद तय हुआ कि एसकेएम 16 फरवरी को भारत बंद करेगा। हालांकि यहां पर भी ग्रामीण भारत और औद्योगिक प्रतिष्ठानों के बंद करने की बात कही गई। इस बीच पंजाब व हरियाणा के किसान संगठनों ने 13 फरवरी को दिल्ली मार्च का एलान कर दिया। इस कॉल के बाद सरकार भी तुरंत बातचीत के लिए राजी हो गई। मध्यप्रदेश से जुड़े किसान संगठन के एक पदाधिकारी, आरएसएस के करीबी रहे हैं। ऐसे में किसान आंदोलन की दशा और दिशा, तय होने में दिक्कतें आना लाजमी हैं। जब 16 फरवरी के भारत बंद की कॉल, एसकेएम ने की है तो 13 फरवरी के दिल्ली कूच को बीच में क्यों लाया गया।

तब 23 संगठनों को निलंबित कर दिया गया

दिल्ली में 2020-21 के किसान आंदोलन से जुड़े कई संगठनों ने पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी। इस बात पर ‘संयुक्त किसान मोर्चे’ के पदाधिकारियों और किसान संगठनों के बीच टकराहट बढ़ने लगी थी। पंजाब के किसान संगठनों का कहना था कि संयुक्त किसान मोर्चा, ‘एसकेएम’ ने 23 संगठनों को निलंबित कर दिया, जबकि उनमें से केवल 8 संगठन ही सीधे तौर पर चुनाव में कूदे थे। उस वक्त किसान नेताओं का कहना था, अगर किसी ने एसकेएम के नियमों का उल्लंघन किया है, तो उसकी सजा व्यक्ति को मिलनी चाहिए न कि संगठन को। एसकेएम के इस निर्णय के खिलाफ पंजाब के दो दर्जन से अधिक किसान संगठनों ने समन्वय समिति की बैठक बुलाने की मांग की थी। उस वक्त पंजाब के किसान संगठनों द्वारा गठित राजनीतिक दल ‘संयुक्त समाज मोर्चा’, का नेतृत्व बलबीर सिंह राजेवाल कर रहे थे। इनके साथ भारतीय किसान यूनियन, हरियाणा के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी की ‘संयुक्त संघर्ष पार्टी’ भी सक्रिय हो गई। ‘संयुक्त समाज मोर्चा’ ने सौ से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए।

योगेंद्र यादव व चढ़ूनी भी हुए थे निलंबित

इससे पहले किसान आंदोलन के दौरान एसकेएम ने तय किया था कि कोई भी सदस्य किसी राजनीतिक प्लेटफार्म पर नहीं जाएगा। न ही किसी राजनेता को एसकेएम के मंच पर जगह मिलेगी। आंदोलन खत्म होने के बाद एसकेएम ने कहा था कि मोर्चे का नाम किसी भी राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं किया जाएगा। अगर कोई सदस्य इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे निलंबन का सामना करना पड़ेगा। जब पहली बार गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने चुनाव लड़ने की बात कही, तो उन्हें कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया गया था। इसके बाद योगेंद्र यादव जब लखीमपुर खीरी में भाजपा के एक कार्यकर्ता के घर पर गए तो उन्हें भी एक माह तक निलंबित कर दिया गया था। दिल्ली मार्च को लेकर पंजाब के ‘किसान मजदूर संघर्ष कमेटी’ के अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सभरा का दावा है कि करीब 200 किसान यूनियनें दिल्ली की तरफ मार्च कर रही हैं। इसके लिए 9 राज्यों की किसान यूनियनों से संपर्क किया जा रहा है।

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कर्टेन रेजर सेरेमनी: सीएम योगी बोले, ट्रेड शो के जरिए दुनिया ने देखी यूपी की क्षमता, अब प्रदेश बीमारू नहीं

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ट्रेड शो के जरिए दुनिया ने यूपी की ताकत देखी। उन्होंने कहा कि प्रदेश के बदले माहौल से युवा और उद्यमी उत्साहित है। ओडीओपी योजना पूरे देश में एक यूनिक योजना है।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि उत्तर प्रदेश के युवाओं उद्यमियों और हस्तशिल्पियों के पास पहले से ही क्षमता थी लेकिन उन्हें शासन की मदद की जरूरत थी। सरकार में हम उनके साथ खड़े हुए तो इसका परिणाम सबके सामने है। सरकारी अपेक्षाओं और इंस्पेक्टर राज के कारण प्रदेश की छोटी-छोटी इकाइयां उत्पीड़न से त्रस्त थीं और पलायन के लिए मजबूर थी। हमने ना केवल उन्हें केवल टेक्नोलॉजी दी बल्कि प्रोत्साहन दिया और उन्हें रोकने का काम किया। आज एक जिला एक उत्पाद योजना पूरे देश के अंदर एक यूनिक योजना बन चुकी है। केंद्र सरकार द्वारा बनाई जा रही योजनाओं में एक जिला एक उत्पाद को सर्वोच्च प्राथमिकता पर लिया गया है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हृदय से आभार व्यक्त करते हैं। मुख्यमंत्री योगी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े सोर्सिंग शो यूपी इंटरनेशनल ट्रेड शो (द्वितीय संस्करण) की ‘कर्टेन रेजर सेरेमनी’ एवं औद्योगिक आस्थानों व ओडीओपी सीएफसी परियोजनाओं के शिलान्यास व लोकार्पण समारोह में बोल रहे थे।

ट्रेड प्रमोशन सेंटर का शिलान्यास लखनऊ में किया गया। पहले ट्रेड शो 21 से 25 सितंबर के बीच ग्रेटर नोएडा के इंडिया इंटरनेशनल एक्सपो सेंटर में संपन्न हुआ था। इसके जरिए उत्तर प्रदेश की क्षमताओं को प्रदर्शित करने का सबसे सशक्त मंच मिला। 500 विदेशी बायर आए। 300000 लोग देखने के लिए आए। इस बार 25 से 29 सितंबर के बीच उत्तर प्रदेश की क्षमताओं के प्रदर्शन दुनिया के सामने फिर से किया जाएगा। 

उन्होंने कहा कि आज इन योजनाओं की वजह से युवा उद्यमी उत्साहित और प्रोत्साहित है। बुझे हुए हताश और निराश चेहरों पर आज चमक दिखाई पड़ती है। उत्तर प्रदेश का एक्सपोर्ट 86 हजार करोड़ से बढ़कर 2 लाख करोड़ रुपए हो गया है। थोड़ा सा प्रोत्साहन दीजिए जिसके परिणाम खुद व खुद दिखाई पड़ते हैं।

विश्वकर्मा सम्मान योजना को आज पीएम विश्वकर्मा सम्मान योजना में तब्दील कर पूरे देश में लागू किया गया है। 75000 से अधिक छोटे-छोटे कारीगरों को बैंकों से जोड़ने का काम किया गया है। उनके पास परंपरागत हुनर था लेकिन पैसा ना होने के कारण हताश थे। हमने उनकी इस भावनाओं को समझा और लोन देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया। यूपी की तीसरी योजना प्लेज पार्क स्कीम उत्तर प्रदेश के नए औद्योगिक क्रांति की ओर बड़ा कदम है। बजट में कोई कमी रह जाएगी उसके लिए हमने युवा उद्यमी योजना का प्रावधान बजट में कर दिया है। उन्हें ब्याज मुक्त लोन दिया जाएगा लोन की राशि भी चरणबद्ध रूप से बढ़ती जाएगी।

10 लाख परियोजनाओं का शिलान्यास करेंगे पीएम मोदी
मुख्यमंत्री योगी ने कहा क 19 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी 10 लाख करोड़ रुपए की परियोजनाओं का शिलान्यास करेंगे। इसमें 33 लाख नौजवानों को सीधे-सीधे नौकरी मिलेगी। उत्तर प्रदेश में यह 2017 से पहले नहीं था। उत्तर प्रदेश में आज रोजगार भी है और नौकरी भी है। जहां यह इकाइयां लगेगी वहां डेवलपमेंट अपने आप ही होगा। नए रोजगार की सृजन भी इन इकाइयों के जरिए होंगे। लखनऊ में ऑल इंडिया पैकेजिंग इंस्टीट्यूट बनेगा। निफ्ट का नया सेंटर बनेगा। 25 सितंबर से 29 सितंबर के बीच इंडिया एक्सपो मार्ग में दूसरा ट्रेड सेंटर होगा। ज्यादा से ज्यादा युवाओं को यहां पर जाना चाहिए और देखना चाहिए इसीलिए स्टेज शो का समय 3 दिन से बढ़कर 5 दिन किया गया है। सरकार आपके साथ में है। 

उत्तर प्रदेश का उद्यमी एक बार वहां पर जरूर जाए। पिछली बार जब मैं गया तो मैं भी देख कर पहुंचक रह गया था की इतना कुछ यूपी में है फिर भी लोग कहते थे कि यूपी बीमार है। अब दुनिया देख रही है कि यूपी बीमार नहीं है। बीमारू एक मानसिकता थी एक राजनीतिक मानसिकता थी और इस बीमारू मानसिकता से हमने उत्तर प्रदेश को बाहर निकाला है और आज एक नया उत्तर प्रदेश आपके सामने खड़ा है। देश में नंबर दो की अर्थव्यवस्था उत्तर प्रदेश है। उन्होंने कहा कि अगले 5 वर्ष उत्तर प्रदेश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और देश की नंबर वन अर्थव्यवस्था बनाना है। इसके लिए उद्यमी योजना भी महत्वपूर्ण है और सीएफसी भी महत्वपूर्ण है अपने परंपरागत हस्तशिल्पियों और कारीगरों को प्रोत्साहन भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान निभाएगा।

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UP: भाजपा से बनी बात तो RLD को खोई जमीन लग सकती है हाथ, जयंत यहां से लड़ेंगे चुनाव; हेमा मालिनी का क्या होगा?

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भाजपा और रालोद का गठबंधन हुआ तो आरएलडी को खोई जमीन हाथ लग सकती है। 2009 में भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़कर पहली बार जयंत लोकसभा पहुंचे थे। भाजपा की सरकार न बनने पर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। 2014 और 2019 के चुनाव में रालोद को मतदाताओं की नाराजगी झेलनी पड़ी।

भारतीय जनता पार्टी के साथ राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन की खबरों ने मथुरा की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि गठबंधन हुआ और मथुरा लोकसभा सीट रालोद के हिस्से में गई तो 2009 की तरह एक बार फिर जयंत चौधरी यहां से चुनाव लड़ सकते हैं। 

रालोद को न सिर्फ मथुरा बल्कि प्रदेश के अन्य जाट बहुल सीटों पर भी खोई जमीन वापस मिल जाएगी। इधर, सपा खेमे में भी खलबली है। अब तक सपा-रालोद गठबंधन के तहत मथुरा की सीट रालोद के खाते में है। 19 लाख से अधिक मतदाताओं वाली इस सीट को साढ़े तीन लाख के करीब जाट मतदाता होने के कारण मिनी छपरौली भी कहा जाता है। 

2009 में रालोद ने जयंत चौधरी को भाजपा के साथ गठबंधन में इसी सीट से लांच किया था। ब्रजवासियों ने उन्हें संसद में पहुंचाया, लेकिन वह भाजपा की सरकार न बनने के कारण कांग्रेस के साथ चले गए थे। वर्ष 2014 में भाजपा ने मथुरा से हेमा मालिनी को लड़ाया। 

उनके सामने चुनाव लड़ रहे जयंत चौधरी को 3,30,743 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2019 में रालोद ने कुंवर नरेंद्र सिंह को गठबंधन प्रत्याशी घोषित किया। यह पहला मौका था जब चौधरी परिवार ने जाट बहुल मथुरा संसदीय क्षेत्र से किसी गैर जाट पर दांव खेल। भाजपा से हेमा मालिनी ने उन्हें 2,93.471 वोटों से हरा दिया।

हेमा मालिनी का क्या होगा
भाजपा-रालोद का गठबंधन हुआ और मथुरा लोकसभा सीट रालोद के खाते में गई तो वर्तमान सांसद हेमा मालिनी का क्या होगा, इसे लेकर लोगों में चर्चा कि हेमा को चुनाव लड़ाया जाएगा या नहीं या उन्हें कोई अन्य जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।

मथुरा लोकसभा पर जातीय समीकरण
मथुरा लोकसभा सीट पर करीब 19.23 लाख मतदाता हैं। इनमें करीब साढ़े तीन लाख जाट, करीब तीन लाख ब्राह्मण-ठाकुर, करीब डेढ़ लाख एससी, इतने ही वैश्य, करीब सवा लाख मुस्लिम और 70 हजार के आसपास यादव मतदाता हैं। जबकि अन्य जातियों के करीब चार लाख वोटर हैं।

छह बार भाजपा, चार बार कांग्रेस को मिली जीत, बसपा-सपा का नहीं खुला खाता
मथुरा लोकसभा सीट का वर्ष 1957 से रिकॉर्ड देखें तो अब तक भाजपा ने अकेले लड़ते हुए छह बार जीत हासिल की है। वहीं, कांग्रेस ने 4 बार जीत हासिल की है। सपा और बसपा का अब तक खाता भी नहीं खुला है।

1957 से 2019 तक लोकसभा चुनाव विजेता

1957 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह निर्दलीय चुनाव जीते। अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत जब्त हो गई थी।
1962 में कांग्रेस के चौधरी दिगंबर सिंह जीते
1967 में जीएसएसएबी सिंह निर्दलीय चुनाव जीते
1971 में कांग्रेस से चक्रेश्वर सिंह जीते
1977 में बीएलडी से मणीराम जीते
1980 में जेएनपी (एस) चौधरी दिगंबर सिंह से जीते
1984 में कांग्रेस से मानवेंद्र सिंह जीते
1989 में जनता दल से मानवेंद्र सिंह जीते
1991 में भाजपा से साक्षी महाराज जीते
1996 में भाजपा से तेजवीर सिंह जीते
1998 में भाजपा से तेजवीर सिंह जीते
1999 में भाजपा से तेजवीर सिंह जीते
2004 में कांग्रेस से मानवेंद्र सिंह जीते
2009 में रालोद-भाजपा गठबंधन से जयंत चौधरी जीते
2014 में भाजपा से हेमा मालिनी जीतीं
2019 में भाजपा से हेमा मालिनी जीतीं

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