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यूपी का आलू बना सोना, 14 हजार किलोमीटर दूर पहुंची हजारों टन की खेप

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Aligarh News : यूपी की उपजाऊ मिट्टी से हो रहा उत्‍पादन लगातार विदेशों में लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं. यहां उगने वाले आलू की मांग सात समुंदर पार भी हो रही है. पहली बार यूपी के आलू को अमेरिका के गुनाया में एक्सपोर्ट किया गया है. 

यूपी के आलू की धाक विदेशों में भी है. पहली बार यूपी का आलू हजारों किलोमीटर दूर अमेरिका भेजा गया है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, फार्मर ग्रुप (FPO) की मदद से 29  मीट्रिक टन आलू अमेरिका के गुयाना भेजा गया. इसके साथ ही योगी सरकार का किसानों की आय दोगुनी करने का सपना भी साकार हो रहा है. 

सात समुंदर पार पहुंचेगा आलू  
वाराणसी के एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) के उप महाप्रबंधक ने बताया की आलू को पहली बार व्‍यापारिक तौर पर अमेरिका के गुयाना शहर भेजा गया. उन्‍होंने बताया कि निर्यात किए गए आलू को अलीगढ़ के एफपीओ से खरीद कर कोल्‍ड स्‍टोर में पैक किया गया. 29  मीट्रिक टन आलू समुद्र मार्ग से गुयाना पहुंचेगा. 

एग्रीकल्‍चर एक्‍सपोर्ट सेंटर खोलने की तैयारी 
इसी के साथ अलीगढ़ के किसान उद्यमी के साथ निर्यातक बन रहे हैं. अलीगढ़ में आलू का उत्‍पादन देखकर एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी एग्रीकल्‍चर एक्‍सपोर्ट सेंटर खोलने की तैयारी कर रहा है. अगर अलीगढ़ में एग्रीकल्‍चर एक्‍सपोर्ट सेंटर खुलता है तो जिले के आसपास के हजारों लोगों को रोजगार भी मिलेगा. 

किसानों की आय दोगुनी का सपना साकार हो रहा 
यूपी की योगी सरकार बिचौलियों को हटाकर किसानों की आय दोगुनी करने का प्रयास कर रही है. इस कड़ी में एफपीओ के माध्यम से किसानों को निर्यातक बनाया जा रहा है. यूपी में  यूपी सरकार एफपीओ और किसान समूहों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की ओर बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. 

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Meerut : बासमती का स्वाद बचाने के लिए 10 कीटनाशक प्रतिबंधित, वेस्ट यूपी के 30 जिलों में की जाती है इसकी खेती

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किसान इनका अधिक इस्तेमाल कर रहे थे। इसके चलते बासमती का असली स्वाद बिगड़ रहा था और यूरोपियन देशों में बासमती के निर्यात में 15 फीसदी तक कमी हो गई थी। वेस्ट यूपी के 30 जिलों में बासमती की खेती की जाती है।

बासमती का स्वाद और गुणवत्ता बचाने के लिए 10 कीटनाशकों को प्रतिबंधित कर दिया गया है। किसान इनका अधिक इस्तेमाल कर रहे थे। इसके चलते बासमती का असली स्वाद बिगड़ रहा था और यूरोपियन देशों में बासमती के निर्यात में 15 फीसदी तक कमी हो गई थी। वेस्ट यूपी के 30 जिलों में बासमती की खेती की जाती है।

बासमती चावल उत्तर प्रदेश की भौगोलिक संकेत (जीओग्राफिकल इंडेकेशन जीआई) श्रेणी की फसल है। इसमें लगने वाले कीटों व रोगों की रोकथाम के लिए कृषि रसायनों का प्रयोग किया जाता है। इन रसायनों के अवशेष बासमती चावल में पाए जा रहे हैं। एपीडा (एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट ऑथरिटी ) की ओर से बताया गया कि यूरोपियन यूनियन द्वारा बामसती चावल में ट्र्राइसाइक्लाजोल का अधिकतम कीटनाशी अवशेष स्तर एमआरएल 0.01 पीपीएम निर्धारित किया गया है, लेकिन निर्धारित पीपीएम की मात्रा से अधिक होने के कारण यूरोप, अमेरिका एवं खाड़ी देशों के निर्यात में वर्ष 2020-21 की तुलना में वर्ष 2021-2022 में 15 प्रतिशत की कमी आई है।

इन हालात में अपर निदेशक (कृषि रक्षा) त्रिपुरारी प्रसाद चौधरी ने 30 जिलों में 10 कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इनके प्रतिबंधित होने से बासमती की गुणवत्ता और इसके असली स्वाद को बचाया जा सके। इससे बासमती का निर्यात भी बढ़ाया जा सकेगा।

इन जिलों में होती है बासमती की खेती
बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रितेश शर्मा ने बताया कि बासमती की खेती वेस्ट यूपी के 30 जिलों में होती है। इनमें आगरा, अलीगढ़, औरैया, बागपत, बरेली, बिजनौर, बदायूं, बुलंदशहर, एटा, कासगंज, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, इटावा, गौमबुद्धनगर, गाजियाबाद, हापुड, हाथरस, मथुरा, मैनपुरी, मेरठ, मुरादाबाद, अमरोहा, कन्नौज, मुजफ्फरनगर, शामली, पीलीभीत, रामपुर, सहारनपुर, शाहजहांपुर, संभल आदि शामिल हैं।

ये कीटनाशक किए गए प्रतिबंधित

  • ट्राइसाक्लाजोल, बुप्रोफेजिन, एसीफेट, क्लोरपाइरीफोंस, हेक्साकलोनोजॉल, प्रोपिकोनाजोल, थायोमेथाक्साम, प्रोफेनोफोस, इमिडाक्लोप्रिड और कार्बेनडाजिम शामिल है।

किसानों को कर रहे जागरूक
बासमती की फसल में अंधाधुंध रसायनों के प्रयोग से बिगड़ रहे स्वाद को बचाने के लिए इन कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाया गया है। किसानों को इसके प्रति जागरूक भी किया जा रहा है। यूपी, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड आदि राज्यों में किसानों को रसायनों का कम प्रयोग करने के लिए कहा जा रहा है। कीटनाशक के ज्यादा प्रयोग से यूरोपियन देशों में निर्यात में दिक्कत आई है, जिसे दूर करने के लिए संस्थान के वैज्ञानिक प्रयासरत हैं।
– डाॅ. रितेश शर्मा, प्रधान वैज्ञानिक, बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन (बीईडीएफ), मोदीपुरम

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 त्योहारी सीजन में बढ़ने वाली है महंगाई, दिवाली से पहले सरकार ने क्यों उठाया यह कदम?

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केंद्र सरकार का कहना है कि देश में गेहूं का पर्याप्त भंडार है. आने वाले दिनों में गेहूं की कोई किल्लत नहीं होगी. खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा की माने तो कृत्रिम वजह से गेहूं की कीमतें बढ़ रही हैं. जल्द ही इसके ऊपर भी नियंत्रण पा लिया जाएगा.

गेहूं की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार ने कमर कस ली है. उसने गेहूं की स्टॉक लिमिट को घटाकर कम कर दिया है. इसका मतलब यह हुआ कि अब व्यापारी, थोक विक्रेता और चेन रिटेलर स्टॉक लिमिट से ज्यादा गेहूं का भंडारण नहीं कर सकते हैं. यदि वे 2,000 टन से ज्यादा गेहूं का स्टॉक अपने गोदामों में रखते हुए पाए जाते हैं, तो वह जमाखोरी माना जाएगा और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है.

वहीं, खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा का कहना है कि गेहूं की कीमतों में बढ़ोतरी को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं की स्टॉक लिमिट घटाने का निर्णय लिया है. उनकी माने तो गुरुवार से ही व्यापारी, थोक विक्रेता और बड़ी चेन रिटेलर 2,000 टन से ज्यादा गेहूं का स्टॉक नहीं कर पाएंगे.

गेहूं की कीमत में 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है

बता दें कि 3 महीने पहले 12 जून को केंद्र सरकार ने गेहूं की स्टॉक लिमिट तय की थी. तब उसने आदेश दिया था कि गेहूं कारोबारी मार्च, 2024 तक 3,000 टन तक गेहूं का स्टॉक कर सकते हैं. लेकिन इसी बीच गेहूं महंगा हो गया, जिसके चलते खाद्य पदार्थों की कीमतें भी बढ़ गईं. ऐसे में कालाबाजारी को रोकने के लिए सरकार ने गेहूं की स्टॉक लिमिट घटा दी. खास बात यह है कि पिछले एक महीने में एनसीडीईएक्स पर गेहूं की कीमत में 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो अब बढ़कर 2,550 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है.

दलहनों की भी स्टॉक लिमिट तय की थी

बता दें कि मानसून के आगमन के साथ ही देश में महंगाई बढ़ गई है. सिर्फ गेहूं ही नहीं, बल्कि चावल, चीनी और अन्य खाद्य पदार्थों की कीमत में भी बंपर उछाल आई है. खास बात यह है कि सबसे ज्यादा महंगी अरहर दाल हो गई है. पिछले एक साल के अंदर इसकी कीमत में 45 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. यानि इसका रेट 40 रुपये किलो से ज्यादा महंगा हो गया है. अब दिल्ली में अरहर दाल 155 से 160 रुपये किलो बिक रही है. यही वजह है कि केंद्र सरकार ने बीते महीने दलहनों की भी स्टॉक लिमिट तय कर दी थी.

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डेढ़ कट्ठे की खेती से 60 हजार का महीना कमा रहा MBA पास युवक, पहले करता था बैंक में नौकरी

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किसान देवाशीष कुमार MBA पास हैं. पहले वे एचडीएफसी बैंक में नौकरी करते थे. लेकिन उनका मन खेती में लगता था. ऐसे में उन्होंने बैंक की नौकरी छोड़ दी और मशरूम की खेती शुरू कर दी. खेती की शुरुआत उन्होंने एक हजार रुपये से की थी.

मशरूम की सब्जी बहुत ही टेस्टी होती है. इसे खाना अधिकांश लोग पसंद करते हैं. मशरूम में प्रोटीन, खनिज, डाइटरी फाइबर, विटामिन B1, विटामिनB2, विटामिनB12, विटामिनC और विटामिनE प्रचूर मात्रा में पाया जाता है. इसका नियमित सेवन करने से इंसान के शरीर में पोषक तत्वों की कमी नहीं होती है. यही वजह है कि मार्केट में मशरूम की मांग बढ़ती जा रही है. ऐसे में इसकी खेती करने वाले किसानों की संख्या भी बढ़ रही है. बिहार और झारखंड में किसान अब पारंपरिक फसलों के साथ- साथ मशरूम की भी खेती कर रहे हैं. इससे उन्हें बंपर कमाई हो रही है.

आज हम झारखंड के एक ऐसे किसान के बारे में बात करेंगे, जिनकी किस्मत मशरूम की खेती से बदल गई. वे अब मशरूम उगाकर महीने में हजारों रुपये की कमाई कर रहे हैं. मशरूम की खेती करने वाले इस किसान का नाम देवाशीष कुमार है. वे पूर्वी सिंहभूम जिला स्थित जमशेदपुर के रहने वाले हैं. उन्होंने डेढ़ कट्ठे जमीन पर मशरूम की खेती कर रखी है, जिससे उन्हें महीने में 50 से 60 हजार रुपये की इनकम हो रही है. खास बात यह है कि देवाशीष कुमार ने अपने इस बिजनेस की शुरुआत महज 1 हजार रुपये से ही की थी.

एचडीएफसी बैंक में नौकरी करते थे

दरअसल, देवाशीष कुमार एबीए पास हैं. साल 2015 से पहले वे एचडीएफसी बैंक में नौकरी करते थे. इसी दौरान उनका बिहार के समस्तीपुर स्थित राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय में जाना हुआ. यहां पर उन्हें मशरूम की खेती के बारे में जानकारी मिली. इसके बाद उन्होंने मशरूम की खेती करने की ट्रेनिंग ली. फिर उन्होंने नौकरी छोड़ दी और घर आकर एक हजार रुपए की पूंजी लगाकर मशरुम की खेती शुरू कर दी. हालांकि, शुरुआत में घर वालों ने उनके इस फैसले का काफी विरोध किया, लेकिन वे अपने काम में लगे रहे.

मशरुम उत्पादन की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं

देवाशीष कुमार का गांव में बहुत बड़ा घर है. वे घर के ही चार कमरों से मशरुम की खेती कर रहे हैं. उनको पहली बार में ही सफलता मिल गई. मशरूम का उत्पादन अच्छा हुआ मार्केट में रेट भी उचित मिल गया, जिससे उन्हें मोटी कमाई हुई. इसके बाद देवाशीष कुमार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज उन्होंने अपनी खेती में 2 महिलाओं को स्थाई रूप से रोजगार भी दे रखा है. खास बात यह है कि देवाशीष मशरुम उत्पादन के साथ- साथ नए लोगों को मशरुम उत्पादन की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं.

इन किस्मों की कर रहे हैं खेती

देवाशीष का कहना है कि चारों कमरे का क्षेत्रफल करीब डेढ़ कट्ठे जमीन के बराबर होता है. वही गर्मी के मौसम में कमरे का तापमान कम करने के लिए जमीन पर तीन इंच बालू को बिछा देते हैं. फिर उसके ऊपर समय- समय पर पानी का छिड़काव करते रहते हैं. इससे कमरे का तापमान नियंत्रित रहता है. देवाशीष मुख्य रुप से मिल्की मशरूम, ऑएस्टर, पैडी स्ट्रॉ और क्लाऊड मशरुम की खेती करते हैं. साथ ही मशरुम पाउडर भी बनाते हैं. वेंडर्स आकर उनसे सारा मशरुम खरीद लेते हैं. सर्दियों के दिनों में चार की बजाए छह कमरों में मशरुम की खेती करते हैं.

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