अगर आप भी किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं और जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं तो आपको ये तीन कहानियां जरूर पढ़नी चाहिए जो आपको एक बार फिर ये अहसास करा देंगी कि कठिन परिश्रम और पक्के इरादे से कुछ भी मुमकिन है।
UPSC (IAS) सिविल सेवा परीक्षा को देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक माना जाता है। इस परीक्षा में सफलता का प्रतिशत बहुत काम होता है। इस परीक्षा का सिलेबस बहुत ज्यादा होता है और इसकी तैयारी में बहुत समय लगता है। ज्यादातर उम्मीदवारों का धैर्य इस परीक्षा की तैयारी के दौरान जवाब दे जाता है। कुछ जीवन में विपरीत परिस्थितयों के कारण इस परीक्षा की तैयारी छोड़ देते हैं। अगर आप भी किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं और जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं तो आपको ये तीन कहानियां जरूर पढ़नी चाहिए जो आपको एक बार फिर ये अहसास करा देंगी कि कठिन परिश्रम और पक्के इरादे से कुछ भी मुमकिन है।
जन्म से ही 100 प्रतिशत नेत्रहीन बाला नागेन्द्रन की Success Story: UPSC क्लियर कर हासिल की 659वीं रैंक
भले ही बाज़ार में UPSC Civil Service की तैयारी के लिए बहुत सारा Study Material उपलब्ध हो मगर नेत्रहीन विद्यार्थियों के लिए आज भी बहुत कम विकल्प है। नेत्रहीन लोगो को वैसे भी रोजमर्रा के काम करने में ढेरों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। लेकिन जब दिल में जोश हो इरादे मजबूत हो तो इंसान हर कठिनाई को पार कर लेता है और बाला नागेन्द्रन इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। बाला नागेन्द्रन जन्म से ही 100 प्रतिशत नेत्रहीन हैं। बाला नागेन्द्रन का IAS बनाने का सपना उनके 9th अटेम्प्ट में पूरा हुआ। हालाँकि उन्होंने ने अब तक तीन बार इस परीक्षा को क्लियर किया है। उनकी पूरी कहानी आप नीचे दिए गए लिंक के द्वारा जरूर पढ़नी चाहिए।
भले ही बाज़ार में UPSC Civil Service की तैयारी के लिए बहुत सारा Study Material उपलब्ध हो मगर नेत्रहीन विद्यार्थियों के लिए आज भी बहुत कम विकल्प है। नेत्रहीन लोगो को वैसे भी रोजमर्रा के काम करने में ढेरों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। लेकिन जब दिल में जोश हो इरादे मजबूत हो तो इंसान हर कठिनाई को पार कर लेता है और बाला नागेन्द्रन इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। बाला नागेन्द्रन जन्म से ही 100 प्रतिशत नेत्रहीन हैं। बाला नागेन्द्रन का IAS बनाने का सपना उनके 9th अटेम्प्ट में पूरा हुआ। हालाँकि उन्होंने ने अब तक तीन बार इस परीक्षा को क्लियर किया है। उनकी पूरी कहानी आप नीचे दिए गए लिंक के द्वारा जरूर पढ़नी चाहिए।
IAS इरा सिंघल स्कोलियोसिस (Scoliosis) से पीड़ित है जो रीढ़ की हड्डी का गंभीर रोग है और इसका कोई इलाज नहीं है। इस बिमारी के कारण इंसान को रोजमर्रा के काम करने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। लेकिन इरा ने कभी भी अपनी विकलांगता को अपने सपनों के मार्ग में बाधा नहीं बनने दिया। इरा ने 2014 में UPSC सिविल सेवा परीक्षा की सामान्य श्रेणी में टॉप किया। इससे पहले भी उनका 3 बार UPSC में सिलेक्शन होने के बाद भी उन्हें उनकी बीमारी के कारण कोई सर्विस अलॉट नहीं की गई उन्हें मुकदमा भी लड़ना पड़ा। इरा के संघर्ष की पूरी कहानी आ नीचे दिए गए लिंक के द्वारा पढ़ सकते हैं।
पांच साल की उम्र में पूर्णा साँथरी की आंखों की रोशनी कम होने लगी थी। उनके माता पिता ने उनका इलाज कराया लेकिन डॉक्टरों ने कहा की पूर्णा को एक दुर्लभ अपक्षयी विकार की बिमारी है। कुछ समय बाद उनकी दाहिनी आंख पूरी तरह से ख़राब हो गई और उनकी बाईं आंख को बचाने की कोशिश के लिए सर्जरी की गई। लेकिन यह सर्जरी भी असफल रही और पूर्णा ने धीरे-धीरे अपनी दोनों आँखों की रोशनी खो दी। तैयारी के दौरान उन्हें उनके माता पिता और दोस्तों ने सहयोग किया और कड़ी मेहनत से उन्होंने इस कठिन परीक्षा को क्रैक किया। इनकी पूरी कहानी आप नीचे दिए गए लिंक के द्वारा हासिल कर सकते हैं।
गिरफ्तार अभियुक्तों ने बताया कि हम लोगों का संगठित गिरोह है। देवरिया, मऊ, आजमगढ़ गोरखपुर, बलिया, गाजीपुर व अन्य कई जिलों में लोगों का एटीएम कार्ड बदलकर रुपये निकालने की घटना को अंजाम देते हैं।
एटीएम कार्ड बदलकर जालसाजी करने वाले गिरोह के सात सदस्यों को एसटीएफ ने बलिया से गिरफ्तार कर लिया। इसमें दो बदमाश अजय दूबे व मोहित साहनी पर 25-25 हजार रुपये का इनाम भी घोषित था। आरोपियों को बलिया के कोतवाली थाने में सुपुर्द कर दिया गया है। आगे की कार्रवाई बलिया पुलिस कर रही है।
आरोपियों के पास से एसटीएफ ने 35 अलग-अलग बैंकों के एटीएम कार्ड, एक तमंचा, एक कारतूस, पांच कीपैड मोबाइल फोन, पांच एंड्राइड मोबाइल फोन, एक कार व 10 हजार आठ सौ रुपये नकद बरामद कर किया है।
जानकारी के मुताबिक, बलिया, गोरखपुर, देवरिया कुशीनगर, सिद्धार्थनगर, मऊ एवं उत्तर प्रदेश के अन्य जनपदों में एटीएम कार्ड बदलकर पैसा निकालने वाले गिरोह पर कार्रवाई के लिए एसटीएफ गोरखपुर यूनिट को लगाया गया था। मुखबिर की सूचना पर टीम ने आरोपियों को बलिया के बहादुरपुर पुलिया के पास सफेद रंग की कार से पकड़ लिया।
पूछताछ में गिरफ्तार अभियुक्तों ने बताया कि हम लोगों का संगठित गिरोह है। देवरिया, मऊ, आजमगढ़ गोरखपुर, बलिया, गाजीपुर व अन्य कई जिलों में लोगों का एटीएम कार्ड बदलकर रुपये निकालने की घटना को अंजाम देते हैं। अभी 17 अक्तूबर को बलिया रेलवे स्टेशन के पास एक व्यक्ति का एटीएम कार्ड बदलकर उसके खाते से रुपये निकाले थे।
अजय दूबे उर्फ छोटू बिहारी उर्फ बाबा ने पूछताछ में बताया कि वह वर्ष 2013 में दिल्ली में खराद की मशीन का काम करता था, वहीं मेरी मुलाकात धर्मेंद्र सिंह निवासी जौनपुर से हुई जो मुझे एटीएम कार्ड एक्सचेंज कर पैसे निकालने के बारे में बताया था। बाद में हम लोग साथ में मिलकर काम करना शुरू कर दिए।
पहली बार थाना धनघटा जनपद संतकबीरनगर से एटीएम कार्ड बदलकर पैसे निकालने के मामले में जेल गया और जेल से छूटने के बाद सुरजीत बिंद उर्फ छोटे लाल निवासी बांसगांव गोरखपुर के साथ मिलकर एटीएम एक्सचेंज का काम शुरू किया। एटीएम एक्सचेंज करने के बाद जो भी पैसा निकलता था उस पैसे को बराबर बाट लेते हैं। सुरजीत चौरीचौरा में पकड़ा गया।
इनकी हुई गिरफ्तारी
बिहार के मूल निवासी व बांसगांव के रद्युवाडीह में रहने वाले अजय दुबे, गुलरिहा के जैनपुर निवासी आशीष यादव, बांसगांव के भटौली निवासी दुर्गेश पांडेय, बांसगांव, हरनही निवासी अभिलाष सिंह, शाहपुर के बशारतपुर निवासी मोहित साहनी, सिकरीगंज के गोविंदपुर निवासी संदीप मिश्रा को गिरफ्तार किया गया है।
ऐसे करते हैं वारदात
आरोपियों ने बताया कि हम लोगों में से दो या तीन लोग एक ही एटीएम के आसपास बैठ जाते हैं, जब कोई व्यक्ति एटीएम से पैसा नहीं निकाल पाता है तो उसकी मदद कर पैसा निकाल देते हैं। जिस बैंक का एटीएम उसके पास होता है, उसी बैंक का एटीएम अपने पास से बदलकर उसे दे देते हैं फिर बाद में उस एटीएम से उसी दिन दूसरे एटीएम पर जाकर बैलेंस चेक करके एक दिन में जितना लिमिट होता है उतनी रकम निकाल लेते हैं।
संदीप मिश्रा और मोहित साहनी नई बाजार, चौरीचौरा में एसबीआई के एटीएम के अंदर किसी व्यक्ति का एटीएम एक्सचेंज कर रहा था तो वहां मैं और सुरजीत बिन्द मौजूद थे। जब संदीप और मोहित उस व्यक्ति का एटीएम एक्सचेंज कर रहे थे तो हम लोगों ने देख लिया फिर हम लोग संदीप और मोहित के पीछे-पीछे गए और आधा पैसा ले लिए। फिर इन दोनों से हम लोगों की दोस्ती हो गई।
इन घटनाओं में थे शामिल
16 अक्तूबर 2023 को रुद्रपुर, देवरिया में एटीएम बदलकर 15 हजार रुपये की जालसाजी।
17 अक्तूबर 2023 को दोहरीघाट, मऊ में सात हजार रुपये की जालसाजी। उसी रात पिपराइच में एटीएम कार्ड बदलकर 95 सौ रुपये की जालसाजी। फिर रेलवे स्टेशन के पास से 16 हजार रुपये की जालसाजी।
महिला सशक्तिकरण को बेहद आसान शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाएँ शक्तिशाली बनती है जिससे वो अपने जीवन से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती है और परिवार और समाज में अच्छे से रह सकती है। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिये उन्हें सक्षम बनाना महिला सशक्तिकरण है।
महिला सशक्तिकरण , प्रा. वि. भरगाई , कैम्पियरगंज , गोरखपुर
भारत में महिला सशक्तिकरण की क्यों जरुरत है ?
महिला सशक्तिकरण की जरुरत इसलिये पड़ी क्योंकि प्राचीन समय से भारत में लैंगिक असमानता थी और पुरुषप्रधान समाज था। महिलाओं को उनके अपने परिवार और समाज द्वार कई कारणों से दबाया गया तथा उनके साथ कई प्रकार की हिंसा हुई और परिवार और समाज में भेदभाव भी किया गया ऐसा केवल भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी दिखाई पड़ता है। महिलाओं के लिये प्राचीन काल से समाज में चले आ रहे गलत और पुराने चलन को नये रिती-रिवाजों और परंपरा में ढ़ाल दिया गया था। भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान देने के लिये माँ, बहन, पुत्री, पत्नी के रुप में महिला देवियो को पूजने की परंपरा है लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं कि केवल महिलाओं को पूजने भर से देश के विकास की जरुरत पूरी हो जायेगी। आज जरुरत है कि देश की आधी आबादी यानि महिलाओं का हर क्षेत्र में सशक्तिकरण किया जाए जो देश के विकास का आधार बनेंगी।
महिला सशक्तिकरण , प्रा. वि. भरगाई , कैम्पियरगंज , गोरखपुर
भारत एक प्रसिद्ध देश है जिसने ‘विविधता में एकता’ के मुहावरे को साबित किया है, जहाँ भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते है। महिलाओं को हर धर्म में एक अलग स्थान दिया गया है जो लोगों की आँखों को ढ़के हुए बड़े पर्दे के रुप में और कई वर्षों से आदर्श के रुप में महिलाओं के खिलाफ कई सारे गलत कार्यों (शारीरिक और मानसिक) को जारी रखने में मदद कर रहा है। प्राचीन भारतीय समाज दूसरी भेदभावपूर्ण दस्तूरों के साथ सती प्रथा, नगर वधु व्यवस्था, दहेज प्रथा, यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, गर्भ में बच्चियों की हत्या, पर्दा प्रथा, कार्य स्थल पर यौन शोषण, बाल मजदूरी, बाल विवाह तथा देवदासी प्रथा आदि परंपरा थी। इस तरह की कुप्रथा का कारण पितृसत्तामक समाज और पुरुष श्रेष्ठता मनोग्रन्थि है।
पुरुष पारिवारिक सदस्यों द्वारा सामाजिक राजनीतिक अधिकार (काम करने की आजादी, शिक्षा का अधिकार आदि) को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया। महिलाओं के खिलाफ कुछ बुरे चलन को खुले विचारों के लोगों और महान भारतीय लोगों द्वारा हटाया गया जिन्होंने महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण कार्यों के लिये अपनी आवाज उठायी। राजा राम मोहन रॉय की लगातार कोशिशों की वजह से ही सती प्रथा को खत्म करने के लिये अंग्रेज मजबूर हुए। बाद में दूसरे भारतीय समाज सुधारकों (ईश्वर चंद्र विद्यासागर, आचार्य विनोभा भावे, स्वामी विवेकानंद आदि) ने भी महिला उत्थान के लिये अपनी आवाज उठायी और कड़ा संघर्ष किया। भारत में विधवाओं की स्थिति को सुधारने के लिये ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने अपने लगातार प्रयास से विधवा पुर्न विवाह अधिनियम 1856 की शुरुआत करवाई।
महिला सशक्तिकरण , प्रा. वि. भरगाई , कैम्पियरगंज , गोरखपुर
पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले लैंगिक असमानता और बुरी प्रथाओं को हटाने के लिये सरकार द्वारा कई सारे संवैधानिक और कानूनी अधिकार बनाए और लागू किये गये है। हालाँकि ऐसे बड़े विषय को सुलझाने के लिये महिलाओं सहित सभी का लगातार सहयोग की जरुरत है। आधुनिक समाज महिलाओं के अधिकार को लेकर ज्यादा जागरुक है जिसका परिणाम हुआ कि कई सारे स्वयं-सेवी समूह और एनजीओ आदि इस दिशा में कार्य कर रहे है। महिलाएँ ज्यादा खुले दिमाग की होती है और सभी आयामों में अपने अधिकारों को पाने के लिये सामाजिक बंधनों को तोड़ रही है। हालाँकि अपराध इसके साथ-साथ चल रहा है।
कानूनी अधिकार के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये संसद द्वारा पास किये गये कुछ अधिनियम है – एक बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976, दहेज रोक अधिनियम 1961, अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956, मेडिकल टर्म्नेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987, बाल विवाह रोकथाम एक्ट 2006, लिंग परीक्षण तकनीक (नियंत्रक और गलत इस्तेमाल के रोकथाम) एक्ट 1994, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013।
निष्कर्ष
भारतीय समाज में सच में महिला सशक्तिकरण लाने के लिये महिलाओं के खिलाफ बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना और उन्हें हटाना होगा जो कि समाज की पितृसत्तामक और पुरुष प्रभाव युक्त व्यवस्था है। जरुरत है कि हम महिलाओं के खिलाफ पुरानी सोच को बदले और संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाये।
आनंद कुमार ने दिया ‘आनंद मंत्र’ – मोबाइल को हराना है तो मिलकर हराएं. यानी परिवार के भीतर मोबाइल से जो टापू बन गए हैं उनको तोड़ें. एक-दूसरे से बातचीत करें, एक-दूसरे को समझने का प्रयास करें
हमारे हाथ में मोबाइल होता है और हमें दुनिया मुट्ठी में लगने लगती है, लेकिन सच्चाई क्या है, हम खुद मोबाइल की मुट्ठी में हो जाते हैं. हम मोबाइल पर वह नहीं करते जो चाहते हैं, बल्कि वह करते हैं जो मोबाइल कंपनियां हमसे करवाना चाहती हैं. आज इंटरनेट का जाल हमारे चारों ओर फैल गया है. इसका हम पर क्या असर पड़ रहा है, हम मोबाइल पर नजर टिकाए समाज में बदल गए हैं. मोबाइल का पूरा असर पढ़ाई-लिखाई पर हो रहा है. लोगों में अब एकाग्रता नहीं बची है, कुछ भी पढ़ते हैं, भूल जाते हैं. याद रखने की जरूरत नहीं है अब क्योंकि गूगल है आपके पास. हम एक भूली हुई बेखबर पीढ़ी में अपने आप को बदल रहे हैं. सोचने, समझने और रचने की क्षमता खत्म होती जा रही है. न स्मृति, न अनुभव, बस हम हैं मोबाइल की मुट्ठी में. आज NDTV के ‘द आनंद कुमार शो’ के तीसरे एपिसोड में इसी विषय पर चर्चा की गई.
सूरत और राजकोट में दो छात्रों ने अपनी जान बस इसलिए दे दी क्योंकि उनके मां-पिता ने उन्हें मोबाइल देने से इनकार कर दिया. यह मोबाइल की जानलेवा लत की इकलौती मिसाल नहीं है. एक सर्वे के मुताबिक ज्यादातर मां-पिता बच्चों में बढ़ती मोबाइल की लत को लेकर चिंतित हैं. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की एक रिपोर्ट के हिसाब से बस 10.1 फीसदी बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल ऑनलाइन लर्निंग के लिए करते हैं. जबकि इससे 37 फीसदी बच्चों की एकाग्रता घटी है. यह बड़ा सवाल है कि मोबाइल कितना हमारे काम आ रहा है और कितना हमारे बच्चों को भटका रहा है. मोबाइल फोन के मकड़जाल में फंसे बच्चे
सुपर-30 के संस्थापक और शिक्षक आनंद कुमार ने कहा, मोबाइल ने बच्चों को अपने मकड़जाल में फंसा रखा है. उन्होंने कुछ ऐसे छात्रों से बातचीत की जिनको मोबाइल ने घेर रखा था. कुछ इस जाल में फंसे रहे, कुछ निकल पाए. और कुछ निकलने से पहले काफी कुछ गंवा बैठे.
छात्र एकांश ने बताया कि 12वीं बोर्ड के टर्म वन के दौरान पता चला कि मोबाइल के जाल में फंस रहा हूं. छात्र प्रणय वाही ने बताया कि मां-पिता के टोकने पर भी पहले लगता था कि मोबाइल से आगे असर नहीं होगा, पर बहुत ज्यादा असर हुआ. हमें पता भी नहीं था कि हमारे साथ क्या होने वाला है, क्या नहीं. कक्षा 9वीं में गेम खेलने लगा, पब्जी वगैरह. पता नहीं चला कब टाइम बीत गया. पूरा दिन निकल जाता था, सिर्फ गुस्सा आता था. मां-बाप पर गुस्सा निकाल देता था. कक्षा 12वीं में आते-आते समझ गया कि यह गलत है, यह छोड़ना पड़ेगा. मैंने अपना ध्यान कहीं और लगाया, किताबों में लगाया, खेलकूद में लगाया, दोस्तों के साथ बाहर गया. इन छोटी-छोटी चीजों से अच्छा लगा.
माता-पिता के टोकने पर भी नहीं बंद किया गेम खेलना
एकांश सिंघल ने बताया कि, मुझे मेरे पेरेंट्स रोकते थे, सर दर्द होने लगा था. मोबाइल डिस्प्ले बहुत ज्यादा देख रहा था. माइंड नहीं किया क्योंकि मजा आ रहा था. छोड़ नहीं पाया गेम को. फिर सोचा कुछ तो तरीका हो जिससे एडिक्शन कम हो. फिर फ्रेंड्स के साथ आउटिंग करना ट्राई किया.
आनंद कुमार ने कहा, बच्चे मोबाइल पर गेम खेलते हैं, मजा आता है, लेकिन उनको पता नहीं चलता कि अपने शरीर को नष्ट करके किस कीमत पर उनको यह अच्छा लग रहा है. जो उनको गड्ढे में गिरा रहा है.
छात्र प्रणय वाही ने बताया कि मोबाइल पर गेम खेलने से उनका ग्रेड धीरे-धीरे गिरता गया. सोचा फिर ऊपर आ जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और इसी वजह से फेल हो गया.
पढ़ाई पार्ट टाइम होती जा रही थी
एकांश ने बताया कि स्कूल के दोस्तों के साथ मोबाइल गेम्स खेलते थे. दोस्त जाने लगे तो पब्जी खेलने के लिए ऑनलाइन फ्रेंड ढूंढे. एक्जाम में ग्रेड डाउन होने लगा. तब पढ़ाई पार्ट टाइम होती जा रही थी. मोबाइल का एडिक्शन 12 से 13 घंटे का हो गया था. परेंट्स ने बोला, काउंसलर ने समझाया, पर समझ नहीं आया.
जब भी आप मोबाइल गेम या गलत आदतों के शिकार हो जाते हैं, तब आपको पता भी नहीं चलता कि आप किस तरह से फंस चुके हैं. जब पता चलता है तब तक काफी देर हो जाती है. जब निकलना चाहते हैं तो छटपटाहट होती है. ऐसी स्थिति में फिर मोबाइल आपको अपनी तरफ खींच लेता है.
किताबें पढ़ने से आता गया बदलाव
प्रणय वाही ने बताया कि उन्होंने पहले किताबें पढ़नी शुरू कीं, स्कूल की नहीं बल्कि बाहर की किताबें. इससे पॉजिटिव एनर्जी आई. लाइब्रेरी जाना शुरू किया. फिर दिन पूरा किताबों में निकलता था.
एकांश ने कहा कि, मेरा संदेश यह है कि गेम को मजे के लिए, टाइम पास करने के लिए खेल रहे हैं तो उसको पूरी तरह खत्म करना पड़ेगा. यदि करियर ऑप्शन की तरह देख रहे हो तो अच्छे से खेलो, थोड़ा प्रोफेशनल हो. प्रणय ने बताया कि माता-पिता ने मोबाइल गेम खेलने पर मारा भी. एक स्थिति में समझ आ गया कि उस मार का भी असर है.
शो में मौजूद छात्र-छात्राओं ने कई सवाल किए जिनके आनंद कुमार और प्रणय व एकांश ने जवाब दिए.
आनंद कुमार ने शो के अंत में ‘आनंद मंत्र’ दिया- मोबाइल को हराना है तो मिलकर हराएं. यानी परिवार के भीतर मोबाइल से जो टापू बन गए हैं उनको तोड़ें. एक-दूसरे से बातचीत करें, एक-दूसरे को समझने का प्रयास करें. आपस की मुश्किलों को भी, आपसी जरूरतों को भी आपकी दुनिया जितनी साझा होगी, जितना आप आपस में बातचीत करेंगे उतना ही मोबाइल के मायाजाल से बाहर रहेंगे.