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गंदा हो गया है फोन कवर तो बेकिंग सोडा डालकर धो डालिये, हो जाएगा चकाचक, फ्रेंड पूछेंगे- नया लिया क्या

Nemo enim ipsam voluptatem quia voluptas sit aspernatur aut odit aut fugit, sed quia consequuntur magni dolores.

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आप अपने फोन को सुरक्षित रखने के लिए हम केस या कवर का इस्तेमाल करते हैं. ये कवर हमारे फोन को तो गंदा होने से बचाते हैं, लेकिन ये कवर बाथरूम काउंटर, रेस्तरां टेबल और यहां तक कि ज़मीन के सरफेस को भी टच करते हैं. ऐसा होने पर फोन के केस पर कीटाणु, गंदगी और बैक्टीरिया होना आम बात हैं. 

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क्या होते हैं आंसू गैस के गोले, जिसका भीड़ को तितर-बितर करने के लिए होता है इस्तेमाल; इससे कैसे करें बचाव

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दिल्ली आकर विरोध प्रदर्शन के लिए प्रयासरत किसानों को हरियाणा-पंजाब के शंभू बॉर्डर पर रोक लिया गया है। यहां इन्हें तितर-बितर करने के लिए आंसू गैसे के गोले का इस्तेमाल किया जा रहा है। आइए इस एक्सप्लेनर में जानते हैं इन गोलों के बारे में-

नई दिल्ली: किसान आंदोलन एक बार फिर से शुरू हो गया है। किसान देश के कई राज्यों से चलकर दिल्ली आना चाहते हैं। वह यहां पहुंचकर सिरोध प्रदर्शन करना चाहते हैं। वहीं सरकार ने इन किसानों को दिल्ली से कई किलोमीटर दूर ही रोक दिया है। बता दें कि साल 2020 के किसान आंदोलन के दौरान किसान दिल्ली की सीमाओं तक पहुंचने में कामयाब रहे थे। इसका परिणाम यह हुआ था कि कई महीनों तक दिल्ली सीमाएं सील रही थीं। सरकार नहीं चाहती थी कि इस बार कुछ ऐसा हो, इसलिए आंदोलनरत किसानों को पहले ही रोक दिया गया।

इस आंदोलन के दौरान सबसे ज्यादा हरियाणा पंजाब के शंभू बॉर्डर की हो रही है। इस बॉर्डर पर हरियाणा पुलिस, पैरामिलिट्री फ़ोर्स और किसानों के बीच भीषण झड़प चल रही है। सुरक्षाबल किसानों को आगे बढ़ने नहीं दे रहे हैं और किसान आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत हैं। इस दौरान उन्हें वहां से हटाने के लिए सुरक्षाकर्मी बल प्रयोग कर रहे हैं। इस दौरान वह आंसू गैस के गोलों का भी इस्तेमाल भी कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि यह आंसू गैस के गोले क्या हैं और इनका निर्माण कैसे होता है?

क्या होता है आंसू गैस का गोला?

दरअसल आंसू गैस के गोले एक ऐसा बम होता है, जिससे धुआं रिलीज होता है। यह धुआं इसकी रेंज में आने वाले व्यक्ति को परेशान कर देता है। वह व्यक्ति की आंखों पर सीधा असर डालता है और जलन करने लगता है। इसके साथ ही व्यक्ति को भयानक रूप से खांसी भी होने लगती है। वहीं कई बार तो इसकी चपेट में आये व्यक्ति को उल्टी और मिचली जैसे समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।

कैसे होता है निर्माण?

दरअसल आंसू गैस के गोलों को कई कैमिकल के मिश्रण से बनाया जाता है। इसे लेक्रिमेटर भी कहते हैं। इसके निर्माण की अनुमति सबको नहीं होती है। सरकार चुनिंदा लोगों को ही इसके निर्माण का लाइसेंस देती है। आंसू गैस बनाने के लिए Chloroacetophenone (CN) और Chlorobenzylidenemalononitrile (CS)का इस्तेमाल किया जाता है। इनके अलावा क्लोरोपिक्रिन (पीएस) का भी इस्तेमाल किया जाता है, जिसका इस्तेमाल फ्यूमिगेंट के रूप में भी किया जाता है। Bromobenzylcyanide (सीए); Dibenzoxazepine (सीआर) नामक कैमिकल से इसका उत्पादन किया जाता है। 

किसके आदेश पर होता है इसका इस्तेमाल?

नोएडा पुलिस कमिश्नरेट के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इंडिया टीवी से बात करते हुए बताया कि इसके इस्तेमाल के आदेश देने के लिए कोई तय अधिकारी नहीं है। हालात और परिस्थियों को देखते हुए इसके इस्तेमाल का आदेश दे दिया जाता है। अगर मौके पर केवल कांस्टेबल स्तर का पुलिसकर्मी ही मौजूद है तो वह भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन फिर भी माना जाता है कि आर्डर कम से कम सब इंस्पेक्टर पद का अधिकारी इसकी इजाजत दे। लेकिन वह दोहराते हुए बताते हैं कि हालात को देखकर इसके इस्तेमाल करने करने की इजाजत हर पुलिसकर्मी को है।  

इस्तेमाल करने का क्या मापदंड?

पुलिस अधिकारी बताते हैं कि जब पुलिस को लगता है कि कानून व्यवस्था बिगाड़ सकती है तो इसका इस्तेमाल भीड़ को हटाने के लिए किया जाता है। गोले छोड़ने से पहले चेतावनी जारी की जाती है। अगर फिर भी भीड़ नहीं हटती है तो इसका इस्तेमाल किया जाता है। वह बताते हैं कि हमारी कोशिश रहती है कि इससे किसी को घातक नुकसान ना पहुंचे लेकिन उस दौरान अगर वहां कोई दमा और अस्थमा का मरीज होता है तो उस पर इसका घातक प्रभाव पड़ सकता है।

कैसे किया जाता है इस्तेमाल?

इस बातचीत के दौरान नोएडा पुलिस के अधिकारी बताते हैं कि भीड़ पर इसका दो तरह से इस्तेमाल किया जाता है। पहला हथगोले के रूप में और दूसरा टियर स्मोक ग्रेनेड के रूप में। हथगोला को भीड़ के पास में ही होने की स्थिति में हाथ से फेंका जाता है। यह 50 से 100 मीटर की दूसरी के लिए उपयोग में लाया जाता है। वहीं टियर स्मोक ग्रेनेड को गन से फायर किया जाता है। इससे 200 से 500 मीटर की दूरी तय की जा सकती है। 

गैस के गोले के प्रभाव से कैसे बचें?

आंसू गैस से होने वाले प्रभाव वैसे तो अस्थाई होते हैं लेकिन यह होते बड़े खतरनाक हैं। पीड़ित व्यक्ति की आंखों में असहनीय जलन होती है। इससे बचने के लिए बेहद ही आसान तरीका है। पहले तो आपको ऐसे जगह जाने से बचना है, जहां इसका इस्तेमाल हो रहा हो। अगर फिर भी आप वहां हैं तो आपक अपने चेहरे को किसी कपडे से ढंक लें। कोशिश करें कि यह कपड़ा हल्का गीला हो, जिससे गोले से निकलने वाली गैस का आप पर कम प्रभाव हो।

इसके साथ ही आप कोशिश कीजिए कि आंखों पर चश्मा लगाया हुआ हो। इसके साथ ही आसपास ताजा और ठंडा पानी की उपलब्धता हो। जिससे अगर आप इसके प्रभाव में आ भी जाएं तो आप तुरंत अपनी आंखों को धुल लें, जिससे धुंए का प्रभाव कम हो जाए। इसके साथ ही आंदोलन के दौरान देखने में आया कि किसान आंसू गैस के गोले के ऊपर पानी से भीगी हुई बोरी डाल दे रहे थे। जिससे गोला निष्क्रिय हो जा रहा था। आंसू गैस के गोले से बचने का यह भी एक प्रभावी तरीका है।

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दिल्ली मेट्रो के 50 स्टेशनों पर डिजिटल लॉकर की सुविधा शुरू

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दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी) के प्रबंध निदेशक विकास कुमार ने बुधवार को शिवाजी स्टेडियम मेट्रो स्टेशन पर इस सेवा की शुरुआत की.

नई दिल्ली: 

दिल्ली मेट्रो के 50 स्टेशनों पर यात्रियों के लिए अपना सामान लॉकर में रखने की सुविधा शुरू की गई है. इस डिजिटल लॉकर को एक मोबाइल ऐप के जरिये संचालित किया जाएगा और यात्री तय घंटों के लिए लॉकर में अपना सामान सुरक्षित रख सकेंगे. दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी) के प्रबंध निदेशक विकास कुमार ने बुधवार को शिवाजी स्टेडियम मेट्रो स्टेशन पर इस सेवा की शुरुआत की. डिजिटल लॉकर की यह सुविधा फिलहाल राजीव चौक, मिलेनियम सिटी सेंटर गुरुग्राम, द्वारका सेक्टर-10, सुप्रीम कोर्ट, शहीद स्थल (नया बस अड्डा), दिलशाद गार्डन, नोएडा सिटी सेंटर, आनंद विहार और सरिता विहार जैसे 50 मेट्रो स्टेशनों पर शुरू की गई है.

इन स्टेशनों पर बनाए गए स्मार्ट बॉक्स को अपनी जरूरत के हिसाब से सीमित समय के लिए बुक किया जा सकता है. इसके लिए यात्री को किसी मानवीय सहयोग की जरूरत नहीं होगी और वह मोबाइल ऐप ‘मोमेंटम 2.0′ को डाउनलोड कर अपना स्लॉट बुक कर सकेगा. इस ऐप का विकास करने वाली कंपनी ऑटोपे पेमेंट सॉल्यूशन के संस्थापक अनुराग बाजपेयी ने कहा कि इस ऐप का इस्तेमाल कर कोई भी व्यक्ति निर्धारित स्टेशनों पर एक घंटे से लेकर छह घंटे तक के लिए लॉकर की सेवाएं ले पाएंगे. इसके लिए निर्धारित किराये का भुगतान भी ऐप के जरिये ऑनलाइन ही करना होगा.

डीएमआरसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने डिजिटल लॉकर सुविधा की तुलना रेलवे स्टेशनों पर मिलने वाली क्लॉक रूम सुविधा से करते हुए कहा कि दोनों में अंतर सिर्फ डिजिटल मंच के इस्तेमाल का ही है. इसके साथ ही यात्री इस ऐप की मदद से 20 मेट्रो स्टेशनों पर स्थित ‘वर्चुअल स्टोर्स’ के जरिये सूचीबद्ध ई-कॉमर्स कंपनियों से ऑनलाइन खरीदारी करने, स्मार्ट बॉक्स (डिजी-लॉकर) के माध्यम से एक कूरियर भेजने और क्यूआर कोड खरीदने का काम भी कर सकते हैं.

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Google के हेडफ़ोन अब हृदय गति भी मापेंगे, बिना किसी अतिरिक्त सेंसर की आवश्यकता

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Google के वैज्ञानिकों ने हेडफ़ोन के द्वारा हृदय गति को मापने में सफलता प्राप्त की है। उन्होंने ऑडियोप्लेथिस्मोग्राफी (एपीजी) नामक तकनीक का इस्तेमाल किया है जो अल्ट्रासाउंड का उपयोग करके हृदय गति को मापती है। यह तकनीक बिना किसी अतिरिक्त सेंसर को जोड़े या बैटरी लाइफ को खराब किए बिना हृदय गति की निगरानी कर सकती है।

Google के वैज्ञानिकों ने हेडफ़ोन के द्वारा हृदय गति को मापने में सफलता प्राप्त की है। उन्होंने ऑडियोप्लेथिस्मोग्राफी (एपीजी) नामक तकनीक का इस्तेमाल किया है जो अल्ट्रासाउंड का उपयोग करके हृदय गति को मापती है। यह तकनीक बिना किसी अतिरिक्त सेंसर को जोड़े या बैटरी लाइफ को खराब किए बिना हृदय गति की निगरानी कर सकती है।

टीम ने 153 प्रतिभागियों के साथ उपयोगकर्ता अनुभव अध्ययन के दो दौर आयोजित किए। परिणामों से पता चलता है कि एपीजी लगातार सटीक हृदय गति (सभी गतिविधि परिदृश्यों में प्रतिभागियों के बीच 3.21 प्रतिशत मध्य त्रुटि) और हृदय गति परिवर्तनशीलता (इंटर-बीट अंतराल में 2.70 प्रतिशत मध्य त्रुटि) माप प्राप्त करता है।

लोग अक्सर सिर्फ संगीत सुनने के लिए ही नहीं बल्कि व्यायाम करने, ध्यान केंद्रित करने या केवल मूड में बदलाव के लिए भी हेडफ़ोन और ईयरबड पहनते हैं।

Google के शोधकर्ताओं ने एक ब्लॉग पोस्ट में कहा, “हमने एक नया सक्रिय इन-ईयर हेल्थ सेंसिंग मोड पेश किया है। एपीजी एएनसी हेडफ़ोन को बिना किसी अतिरिक्त सेंसर को जोड़े या बैटरी लाइफ को खराब किए उपयोगकर्ता के शारीरिक संकेतों, जैसे हृदय गति और हृदय गति परिवर्तनशीलता की निगरानी करने में सक्षम बनाता है।”

एपीजी सुरक्षा नियमों का पालन करता है, जिसमें सीमा से 80 डेसिबल मार्जिन कम है, सील की स्थिति से अप्रभावित रहता है, और सभी त्वचा टोन के समावेशी है।कान नहर में निष्क्रिय सुनने की सिग्नल गुणवत्ता काफी हद तक ईयरबड सील की स्थिति पर निर्भर करती है। कम आवृत्ति संकेतों के निष्क्रिय सुनने पर निर्भर स्वास्थ्य सुविधाओं को व्यावसायिक एएनसी हेडफ़ोन पर एम्बेड करना चुनौतीपूर्ण है।

Google के एक्सपेरिमेंटल साइंटिस्ट Xiaoran “Van” Fan और डायरेक्टर Trausti Thormundsson ने कहा, “एपीजी एक एएनसी हेडफ़ोन के स्पीकर के माध्यम से कम तीव्रता वाले अल्ट्रासाउंड जांच सिग्नल भेजकर उपरोक्त एएनसी हेडफ़ोन हार्डवेयर बाधाओं को बायपास करता है।”

यह सिग्नल इको पैदा करता है, जो ऑन-बोर्ड फीडबैक माइक्रोफोन के माध्यम से प्राप्त होते हैं। हम देखते हैं कि छोटे कान नहर की त्वचा विस्थापन और दिल की धड़कन इन अल्ट्रासाउंड इको को संशोधित करती हैं।

उन्होंने बताया, “अंतिम एपीजी तरंग एक फोटोप्लिथिस्मोग्राम (पीपीजी) तरंग के समान दिखता है, लेकिन डिक्रोटिक नॉच (दबाव तरंगों के साथ केंद्रीय धमनी प्रणाली के बारे में समृद्ध जानकारी प्रदान करता है, जैसे रक्तचाप) के साथ हृदय गतिविधियों का बेहतर दृश्य प्रदान करता है।”

अपने शुरुआती प्रयोगों के दौरान, उन्होंने देखा कि एपीजी खराब ईयरबड सील और संगीत चलने के साथ मजबूती से काम करता है।

टीम ने कहा, “हालांकि, हमने देखा कि एपीजी सिग्नल कभी-कभी बहुत शोरगुल वाला हो सकता है और शरीर की गति से बहुत अधिक परेशान हो सकता है। उस बिंदु पर, हमने निर्धारित किया कि एपीजी को उपयोगी बनाने के लिए, हमें इसे पीपीजी विकास के 80 से अधिक वर्षों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए अधिक मजबूत बनाना है।”

एपीजी एक साधारण सॉफ़्टवेयर अपग्रेड के साथ किसी भी TWS ANC हेडफ़ोन को स्मार्ट सेंसिंग हेडफ़ोन में बदल देता है

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