क्षेत्रीय दलों को वोट तो मिले, लेकिन उन्हें किसी सीट पर सफलता हाथ नहीं लगी। हर चुनाव में एमपी में उत्तर प्रदेश से जुड़े जिलों में बसपा और सपा का प्रभाव देखने को मिलता था, पर इस बार ऐसा नहीं हो पाया।
मप्र विधानसभा चुनाव 2023 के नतीजे कई मायनों में चौंकाने वाले हैं। वोटरों ने इस चुनाव में कांग्रेस का ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय दलों व निर्दलीयों का भी सफाया कर डाला। क्षेत्रीय दलों को वोट तो मिले, लेकिन उन्हें किसी सीट पर सफलता हाथ नहीं लगी। हर चुनाव में एमपी में उत्तर प्रदेश से जुड़े जिलों में बसपा और सपा का प्रभाव देखने को मिलता था, पर इस बार ऐसा नहीं हो पाया। इस बार रतलाम के सैलाना में भारतीय आदिवासी पार्टी को जरूर सफलता प्राप्त हुई है, जो प्रदेश में अन्य के खातों में प्राप्त एकमात्र सीट है।
पिछले चुनावों के परिणामों को देखें तो स्पष्ट होता है कि अन्य दल और निर्दलीय चुनाव में जीतते रहे हैं पर इस बार ऐसा कुछ नहीं हो पाया। सैलाना में कमलेश्वर डोडियार के लिए नए नहीं थे, वे 2018 में इस क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ चुके हैं। उन्हें 18,726 मत मिले थे जो कुल वैध मतों का 11.38 प्रतिशत था। उनका यह क्षेत्र जाना पहचाना और पूर्व चुनाव के अनुभव पर इस बार उनकी विजय सभी दलों पर भरी पड़ी।
प्रदेश के चुनाव में इस बार 107 राजनीतिक दलों ने अपना भाग्य आजमाया था। पर सफलता मात्र तीन दलों को ही प्राप्त हुई यानी 2.80 प्रतिशत दल सीट प्राप्त करने में सफल रहे और 97.20 प्रतिशत को कोई सफलता नहीं मिली।
भाजपा ने जनता लहर से ज्यादा वोट जुटाए
भारतीय जनता पार्टी ने इस चुनाव में 1952 में जनसंघ और 1977 में जनता लहर में प्राप्त मत प्रतिशत 47.28 से भी ज्यादा वोट जुटाए। 2023 के चुनाव में भाजपा को 48.55 प्रतिशत मत प्राप्त हुए जो रिकॉर्ड है। वैसे प्रदेश में सर्वाधिक मत प्राप्त होने का रिकॉर्ड कांग्रेस का (49.83 प्रतिशत) 1957 का है। लगता है भाजपा भविष्य में इस आंकड़े को छूने के लिए आतुर रहेगी।
सहानुभूति लहर में कांग्रेस को मिले थे 48.87 फीसदी
इंदिराजी की हत्या के बाद के विधानसभा चुनाव, जो सहानुभूति लहर में हुए थे, उसमें कांग्रेस ने 48.87 मत प्राप्त किए थे। जबकि 2023 में मतदाताओं ने मौन और बगैर किसी लहर के रूप में भाजपा को वोट देकर चमत्कार किया है।
किन्नर प्रत्याशी की जमानत जब्त
छतरपुर के बड़ा मलहरा से प्रदेश की एक मात्र किन्नर प्रत्याशी चंदा को आम आदमी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया था। उसे 1751 मत प्राप्त हुए और उसकी जमानत जब्त हो गई। इस तरह प्रदेश के मतदाताओं ने प्रमुख दलों पर ही ज्यादा विश्वास किया। बता दें, पूर्व में शहडोल से शबनम मौसी देश की पहली किन्नर विधायक रही हैं।
सपा, बसपा, आप को कोई खास लाभ नहीं
प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती, सपा के अखिलेश यादव और डिम्पल यादव तथा आप के अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने चुनावी सभाओं को संबोधित किया था पर उन्हें कोई खास सफलता हासिल नहीं हुई। सफलता का पूर्ण लाभ भाजपा को और उसके स्टार प्रचारकों को मिला है।