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भारत

भारतीय फ़ाइटर पायलट के पाकिस्तान से बचकर पैदल भारत आने की दास्तान- विवेचना

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बात 1965 की है. छह सितंबर की रात पाकिस्तानी वायुसेना ने सी-130 हरक्यूलिज़ विमान के ज़रिए पठानकोट, हलवाड़ा और आदमपुर हवाई ठिकानों पर हमला करने के लिए 180 पैराट्रूपर उतारे. लेकिन इनमें से अधिकतर सैनिकों को भारतीय सेना ने पकड़ लिया.

इनमें से 22 लोग मारे गए और बाकी पाकिस्तान वापस जाने में सफल हो गए. उसी दौरान पाकिस्तान के दो कैनबरा विमानों ने भारत के आदमपुर एयरबेस पर हवाई हमला बोला. वहाँ तैनात विमानभेदी तोपों ने एक विमान को अपना निशाना बना लिया जो एयरबेस के ठीक बाहर गिरा.

उस लड़ाकू विमान के पायलट और नेविगेटर को पकड़कर आदमपुर एयरबेस के ऑफ़िसर्स मेस में लाया गया. जिनेवा समझौते का पालन करते हुए उनके साथ अच्छा सलूक किया गया. यहाँ तक कि उनकी ख़्वाहिश पर एक पंजाबी ढाबे से तंदूरी चिकन और बटर नान मंगवा कर उन्हें खाने को दिया गया.

अगले दिन इन युद्धबंदियों को सेना के हवाले कर दिया गया. भारतीय सेना का लक्ष्य आगे बढ़कर लाहौर पर कब्ज़ा करना था लेकिन 1950 के दशक में बनाई गई इच्छोगिल नहर आगे बढ़ने में एक बड़ी बाधा साबित हो रही थी.

नहर के पीछे से भारतीय सैनिकों पर 1.55 एमएम की होविट्ज़र तोपों से लगातार हमले किए जा रहे थे. आखिकार भारतीय सेना ने इन तोपों को शांत करने के लिए भारतीय वायुसेना की मदद लेने का फ़ैसला किया.

भारतीय सैनिकों की ग़लतफ़हमी

भारतीय वायु सेना के युद्धक विमानों ने इन तोपों को बंद करने के लिए कई उड़ानें भरीं. कई बार ऐसा होता था कि पाकिस्तानी सैनिकों के विमानभेदी तोपों के गोले और मशीन गन से चलाई गई गोलियों से इन विमानों में छेद हो जाते थे.

भारतीय सीमा के अंदर घुसते-घुसते उनके इंजन फ़्लेम आउट हो जाते थे और भारतीय पायलटों को पैराशूट के ज़रिए नीचे कूदना पड़ता था.

भारतीय वायुसेना के मशहूर पायलट रहे ग्रुप कैप्टन दारा फ़िरोज़ चिनॉय अपनी किताब ‘इस्केप फ़्रॉम पाकिस्तान अ वॉर हीरोज़ क्रोनिकल’ में लिखते हैं, “कई बार भारतीय पायलटों को अपने ही सैनिकों के बुरे व्यवहार का सामना करना पड़ा था. कम-से-कम वायुसेना के एक पायलट के पेट में भारतीय सेना के जवान ने संगीन भोंक दी थी और एक पायलट के कंधे में भारतीय सैनिक की ही गोली लग गई. ये सब इस ग़लतफ़हमी में हुआ कि वो पाकिस्तान के पैराट्रूपर हैं.”

फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट को भारतीय गाँववालों ने पीटा

एक ऐसी ही घटना में एक भारतीय पायलट फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट इक़बाल हुसैन के विमान का ईंधन टैंक पाकिस्तान की विमानभेदी तोपों की फ़ायरिंग से पंक्चर हो गया.

चिनॉय लिखते हैं, “वो मेरी ही स्क्वार्डन के थे. वो बमबारी करके भारत की सीमा में वापस लौट रहे थे. मैं उनका नंबर-टू था, इसलिए उनके पीछे पीछे चल रहा था. जैसे ही वो बेस पर पहुँचने वाले थे, उनका इंजन फ़्लेम आउट हो गया. वो अपने पैराशूट की मदद से आदमपुर गाँव के पास उतरे. मैंने ऊपर से ही देखा कि उन्हें गाँव वालों ने चारों तरफ़ से घेर लिया है. उनके हाथों में तलवारें थीं. मैंने ऊपर सी ही ये सूचना कंट्रोल टावर को भेजी.”

तुंरत दो वायु सैनिकों को मोटर साइकिल से उस गाँव में भेजा गया लेकिन वे जब तक पहुँचे इक़बाल बुरी तरह ज़ख़्मी थे और बेहोश हो गए थे, उन्हें उसी हालत में सैनिक अस्पताल पहुँचाया गया. वो चार दिनों तक आईसीयू में रहे. जब गाँववालों को अपनी ग़लती का एहसास हुआ तो उन्होंने उनके लिए रक्तदान किया.

पाकिस्तानी तोपों को नष्ट करने की ज़िम्मेदारी

एक साल बाद इन्हीं इक़बाल हुसैन ने आदमपुर से जम्मू तक एक विमान में लिफ़्ट ली. ख़राब मौसम के कारण वो विमान जम्मू के पास एक चट्टान से टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त हो गया. 90 फ़ीसदी जल जाने के बावजूद इक़बाल ने दो सहयात्रियों को जलते हुए विमान से बाहर निकाला.

जब वो तीसरे यात्री को जलते हुए विमान से निकालने की कोशिश कर रहे थे, तभी विमान में विस्फोट हुआ और इक़बाल हुसैन उस विस्फोट में मारे गए.

1965 की लड़ाई के अंतिम चरण में पाकिस्तान की एल-155 तोपें भारतीय ठिकानों पर ज़बरदस्त गोलाबारी कर रही थीं. उधर पाकिस्तानी वायुसेना के सेबर जेट्स ने लगातार हमले कर भारतीय सेना का आगे बढ़ना रोक दिया था.

दस सितंबर, 1965 की सुबह सात बजे आदमपुर हवाई ठिकाने पर ग्राउंड लियाज़ाँ अफ़सर ने भारतीय युद्धक पायलटों को उनके अगले मिशन के लिए ब्रीफ़ किया. उनको बताया गया कि उन्हें पाकिस्तानी सेना की तोपों को नष्ट करना है जिनकी सुरक्षा के लिए चारों तरफ़ विमानभेती तोपों को रखा गया है ताकि भारतीय विमान उन पर हमला न कर सकें.

इस मिशन का नेतृत्व कर रहे थे स्क्वार्डन लीडर टीपीएस गिल. फ़्लाइंग आफ़िसर दारा फ़िरोज़ चिनॉय उनके नंबर-टू थे. इस अभियान के उपनेता और नंबर-3 फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट रवि कुमार थे. नंबर-4 की ज़िम्मेदारी फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट गिगी रत्नपारखी को सौंपी गई थी.

एक साल बाद इन्हीं इक़बाल हुसैन ने आदमपुर से जम्मू तक एक विमान में लिफ़्ट ली. ख़राब मौसम के कारण वो विमान जम्मू के पास एक चट्टान से टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त हो गया. 90 फ़ीसदी जल जाने के बावजूद इक़बाल ने दो सहयात्रियों को जलते हुए विमान से बाहर निकाला.

जब वो तीसरे यात्री को जलते हुए विमान से निकालने की कोशिश कर रहे थे, तभी विमान में विस्फोट हुआ और इक़बाल हुसैन उस विस्फोट में मारे गए.

1965 की लड़ाई के अंतिम चरण में पाकिस्तान की एल-155 तोपें भारतीय ठिकानों पर ज़बरदस्त गोलाबारी कर रही थीं. उधर पाकिस्तानी वायुसेना के सेबर जेट्स ने लगातार हमले कर भारतीय सेना का आगे बढ़ना रोक दिया था.

दस सितंबर, 1965 की सुबह सात बजे आदमपुर हवाई ठिकाने पर ग्राउंड लियाज़ाँ अफ़सर ने भारतीय युद्धक पायलटों को उनके अगले मिशन के लिए ब्रीफ़ किया. उनको बताया गया कि उन्हें पाकिस्तानी सेना की तोपों को नष्ट करना है जिनकी सुरक्षा के लिए चारों तरफ़ विमानभेती तोपों को रखा गया है ताकि भारतीय विमान उन पर हमला न कर सकें.

इस मिशन का नेतृत्व कर रहे थे स्क्वार्डन लीडर टीपीएस गिल. फ़्लाइंग आफ़िसर दारा फ़िरोज़ चिनॉय उनके नंबर-टू थे. इस अभियान के उपनेता और नंबर-3 फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट रवि कुमार थे. नंबर-4 की ज़िम्मेदारी फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट गिगी रत्नपारखी को सौंपी गई थी.

ट्रेन पर किए हमले में बम समाप्त हुए

भारतीय विमानों ने दो जोड़ों में 4 एसी टेक्टिकल फ़ॉर्मेशन में उड़ान भरी. उन्होंने नीची उड़ान भरकर तोपों को ढूँढने की कोशिश की लेकिन वो कामयाब नहीं हुए. तभी उन्हें हथियारों को ले जाती एक ट्रेन दिखाई दी. इन विमानों ने उस पर हमला कर उसे बर्बाद कर दिया.

जब ये विमान वापस लौट रहे थे तो उन्हें वो पाकिस्तानी तोपें दिखाई दे गईं जिनकी तलाश में वो निकले थे. लेकिन वो उन पर बम नहीं गिरा सकते थे क्योंकि उनके सारे बम ट्रेन पर किए हमले में समाप्त हो चुके थे.

वापस लौटकर उन्होंने जीएलओ को अपनी रिपोर्ट दी. उन्होंने आदेश दिया कि जल्दी से खाना खाकर भारतीय पायलट बम लेकर दोबारा उस स्थान पर जाएं और वहाँ बमबारी करें.

फ़्लाइंग आफ़िसर चिनॉय जब मेस में खाने पहुंचे तो वहाँ अफ़सरों की भीड़ लगी हुई थी और खाना परोसने वाले लोगों को सबको खाना खिलाने में दिक्कत हो रही थी.

चिनॉय ने सुबह के मिशन में जाने से पहले कुछ भी नहीं खाया था. उनको बहुत प्यास लग रही थी. पूरे मिशन के दौरान उनका बहुत पसीना निकल चुका था इसलिए उनके शरीर में पानी की बहुत कमी हो गई थी.

उन्होंने वेटर से पानी लाने के लिए कहा लेकिन वो इतना व्यस्त था कि उसने उनकी बात अनसुनी कर दी. वो क्रू रूम चले गए जहाँ फ़िलिप राज कुमार बैठे हुए थे. उन्होंने चिनॉय से कहा, “तुम कुछ पानी पी लो. पता नहीं कब तुम्हें पानी नसीब हो.”

चिनॉय ने जल्दी जल्दी एक गिलास पानी पिया और कमरे से बाहर निकल आए.

चिनॉय के विमान में विमानभेदी तोप का गोला लगा

जब वो बेस पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनके साथी पायलट अपने विमानों की तरफ़ बढ़ रहे हैं. उन्होंने तुरंत अपना फ़्लाइंग गियर पहना और वो भी अपने मिस्टियर विमान की तरफ़ बढ़ गए. चारों विमान टेक ऑफ़ करके उसी इलाके में पहुंच गए जहाँ उन्हें पाकिस्तानी तोपें दिखाई दी थीं.

जैसे ही वो वहाँ पहुंचे पाकिस्तान की विमानभेदी तोपें गरजने लगीं. तेजा गिल ने रेडियो पर कहा, ‘पुलिंग अप टारगेट लेफ़्ट, टेन ओ क्लॉक.’ दो सेकेंड बाद चिनॉय ने ऊपर जाकर रेडियो संदेश दिया, ‘नंबर 2, कॉन्टैक्ट टारगेट नाइन ओ क्लॉक रोलिंग इन.’

उसी समय चिनॉय को अपनी सीट के नीचे एक ज़ोर का धक्का महसूस हुआ. दारा फ़िरोज़ चिनॉय लिखते हैं, “ये धक्का ऐसा था मानो किसी खच्चर ने ज़ोर की लात मारी हो. उसी क्षण मेरा इंजन सीज़ हो गया और इंजन फ़ायर चेतावनी लाइट जल गई. मेरे जहाज़ की गति तेज़ी से शून्य पर जाने लगी. मेरा कॉकपिट धुएं से भर गया और मुझे अपने पीछे आग की गर्मी महसूस होने लगी.”

उन्होंने संदेश भेजा, ‘आई एम हिट. इंजन फ़्लेम आउट.’ सेकेंडों में धुआँ और गर्मी इतने बढ़ गए कि उन्हें न तो विमान का इंस्ट्रुमेंट पैनल दिखाई दे रहा था और न ही बाहर कुछ. जब थोड़ा धुआँ छटा तो उन्होंने देखा कि इंजन डेड हो चुका था और धुआँ और आग की लपटें पीछे से फिर से कॉकपिट में घुसना शुरू हो गई थीं.

पैराशूट से गन्ने के खेत में कूदे

चिनॉय के विमान में 2×68 एमएम के रॉकेट्स पॉड रखे हुए थे और उनका ईंधन टैंक तीन-चौथाई भरा हुआ था. ऐसे में अगर उनका विमान 2000 फ़ीट से नीचे गिरता था तो उनकी मौत निश्चित थी. बिना एक सेकेंड गँवाए दारा चिनॉय ने इजेक्शन का बटन दबाया.

चिनॉय लिखते हैं, “जब मैं नीचे आ रहा था तो मुझे राइफ़ल की गोलियों की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी. बीच-बीच में विमानभेदी तोपों के गोले भी मेरी बगल से गुज़र रहे थे. कई गोलियाँ मेरे पैराशूट को भेदते हुए निकल गईं. तब मुझे लगा कि वो लोग मुझे निशाना बनाने की कोशिश कर रहे थे.”

ये जिनेवा समझौते की शर्तों का उल्लंघन था क्योंकि विमान गिराए जाने के बाद पायलट का पैराशूट उसके बचने का एकमात्र साधन होता है.

वे लिखते हैं, “सौभाग्य से मैं गन्ने के खेत में गिरा. गन्ने की कटाई नहीं हुई थी इसलिए मुझे छिपने का मौका मिल गया. जैसे ही मैं नीचे गिरा मुझे पाकिस्तानी सैनिकों की चीखें और गालियाँ और ऑटोमेटिक हथियार से चलाई गई गोलियों की आवाज़ सुनाई देने लगीं.”

गड्ढा खोद कर नक्शा छिपाया

चिनॉय ने ज़िगज़ैग स्टाइल में हिरण की तरह गन्ने के खेत में दौड़ना शुरू कर दिया. डर ने उनके पैरों को और गति दे दी. उन्होंने तुरंत दिमाग़ लगाया कि पाकिस्तानी सैनिक उम्मीद करेंगे कि वो भारतीय सीमा की तरफ़ पूर्व की दिशा में दौड़ेंगे इसलिए उन्होंने उसके उलट पश्चिम की तरफ़ दौड़ना शुरू किया.

धीरे-धीरे वाहनों और उनका पीछा कर रहे पाकिस्तानी सैनिकों की आवाज़ें आना बंद हो गईं.

दारा फ़िरोज़ चिनॉय लिखते हैं, “मैं फिर भी खेतों के बीच दौड़ता रहा और बड़े खेतों में गन्नों की आड़ में अपने को छिपाता रहा. थोड़ी देर बाद मैंने अपने दौड़ने की दिशा उत्तर की तरफ़ कर दी. दो घंटे तक कभी तेज़ गति से दौड़ने और जॉग करने के बाद मैंने एक गन्ने के खेत में थोड़ा आराम किया. मैं थोड़ी देर के लिए ज़मीन पर लेट गया और अपनी उखड़ी साँसों पर नियंत्रण करने की कोशिश करने लगा.”

चिनॉय याद करते हैं, “मेरी पूरी कोशिश थी कि मैं ज़रा भी न हिलूँ. मुझे पता था कि अगर मैं पाकिस्तानी सैनिकों की गिरफ़्त में आ गया तो मेरे साथ कितना ख़राब सलूक किया जाएगा. मैं दुआ करने लगा कि जल्दी से अँधेरा हो जाए. जैसे ही अँधेरा हुआ, मैंने एक गड्ढा खोदा और उसमें अपना नक्शा, रडार ऑथेंटिकेशन शीट और वो सभी चीज़ें गाड़ दीं जिससे दुश्मन को थोड़ी बहुत मदद मिल सकती थी. मैंने अपने चेहरे पर कीचड़ मल लिया. मेरा जी सूट पूरी तरह से मेरे पसीने से भीगा हुआ था और कीचड़ से सने होने के कारण काला दिखाई दे रहा था.”

थकान के बावजूद नहर पार की

थोड़ी देर आराम करने के बाद चिनॉय ने अंतत : पूर्व की तरफ़ बढ़ना शुरू कर दिया. तब तक रात गहरा चुकी थी. चिनॉय ने ऊँची घास और गन्ने के खेतों से गुज़रते हुए आगे बढ़ना जारी रखा. वो जानबूझ कर गाँवों और लोगों से बचकर निकले क्योंकि अगर उन्हें किसी एक शख़्स या कुत्तों ने देख लिया होता तो उन्होंने शोर मचा दिया होता.

चिनॉय ने महसूस किया कि वो सुबह सिर्फ़ एक चाय का प्याला पीकर निकले थे और उन्होंने पिछले बीस घंटों से पानी की एक बूँद भी नहीं पी थी.

उनको भयानक प्यास लगी हुई थी और थकान से उनकी चाल धीमी पड़ने लगी थी. गर्मी, घबराहट और लगातार दौड़ते रहने से वो बुरी तरह डिहाइड्रेटेड हो चले थे.

उन्हें अंदाज़ा था कि अगर वो थकान की वजह से बेहोश हो गए और पाकिस्तानियों के हाथ पड़ गए तो उनके साथ बहुत बुरा सलूक किया जाएगा.

हो सकता है कि उन्हें देखते ही गोली मार दी जाए. उन्होंने पहले कमर तक पानी वाली एक नहर पार की और फिर तेज़ बहाव वाली इच्छोगिल नहर पार की.

भारतीय सैनिकों ने कहा ‘हैंड्स अप’

चिनॉय लिखते हैं, “जैसे ही मैं अमृतसर-बटाला रोड पर आया मुझे लग गया कि मैंने भारत-पाकिस्तान सीमा पार कर ली है. तभी मुझे एक गाँव के बाहर एक कुआँ दिखाई दिया. मैं दौड़कर उसके पास पहुंचा. मैंने घिरनी से एक बाल्टी पानी खींचा. काफ़ी पानी पीने के बाद मैंने बचा हुआ पानी अपने सिर पर डाल लिया. प्यास बुझने के बाद मेरा आत्मविश्वास लौट आया और मैं अमृतसर-बटाला रोड के साथ साथ दक्षिण की तरफ़ चलने लगा.”

वे जान-बूझकर मुख्य सड़क से बचते हुए चल रहे थे. तब तक भोर हो चुकी थी. तभी उन्हें तमिल बोलती हुई कुछ आवाज़ें सुनाई दीं.

वे लिखते हैं, “मुझे मालूम था कि किस तरह हमारे सैनिकों ने फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट विजय मायादेव और बो फाटक को संगीनें भोंकी थीं, इसलिए मैं बोल्डली ज़ोर से चिल्लाया, ‘कौन है वहाँ?’ मैंने उनके चेहरे के भाव पढ़े. कीचड़ से सराबोर गंदा जी सूट पहने हुए मुझे देखकर वो भौंचक्के से रह गए. लेकिन उनमें से एक ने तुरंत मेरे ऊपर राइफ़ल तान कर कहा हाथ ऊपर करो. मैंने घुटनों के बल बैठकर अपने हाथ ऊपर कर दिए.”

चिनॉय के सिर के पास से गोली निकली

भारतीय सैनिकों ने दारा फ़िरोज़ चिनॉय से सवाल करने शुरू कर दिए. उनको इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ कि वो भारतीय वायुसेना के पायलट हैं. चिनॉय ने उनसे कहा कि वो अपने अफ़सर को बुलाएं. जल्दी ही एक सूबेदार मेजर जीप चलाता हुआ वहाँ पहुंचा. उसने भी चिनॉय की बातों पर विश्वास नहीं किया.

उसने चिनॉय से कहा कि वो जीप की पिछली सीट पर बैठ जाएं. चिनॉय लिखते हैं, “जैसे ही मैं जीप पर बैठा, मुझे कवर कर रहा एक भारतीय सैनिक भी जीप पर चढ़ा. ग़लती से उसकी उंगली उसके राइफ़ल के ट्रिगर पर पड़ गई. उसके राइफ़ल से गोली निकली और मेरे सिर के करीब एक इंच की दूरी से निकल गई. जितनी तेज़ गोली की आवाज़ थी उससे तेज़ सूबेदार मेजर के उस थप्पड़ की आवाज़ थी जो उसने उस सैनिक के सिर पर रसीद किया था.”

उन्हें एक कैप्टन के पास ले जाया गया. उसने उनका परिचय पत्र माँगा. चिनॉय ने कहा कि जब वे किसी मिशन पर जाते हैं तो अपने साथ कोई परिचय पत्र नहीं ले जाते हैं.

चिनॉय से सवाल-जवाब

कैप्टन ने फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट दारा फ़िरोज़ चिनॉय की यूनिट की लोकेशन और उसके कमांडर के बारे में सवाल पूछे. चिनॉय ने उन्हें बताया कि ग्रुप कैप्टन जॉक लॉयड उनके स्टेशन कमांडर हैं.

चिनॉय लिखते हैं, “तभी कैप्टन ने पूछा, क्या आप किसी कहाई को जानते हैं? मैंने जवाब दिया, हाँ, वो मेरी यूनिट में फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट हैं. उसका अगला सवाल था, ‘क्या वो मोटे और मोने सिख हैं?’ मैंने जवाब दिया, नहीं वो दुबले-पतले दाढ़ी वाले सिख हैं. ये सुनते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई. उसने मेरी तरफ़ अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, हाय, मैं कैप्टन कहाई हूँ, फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट कहाई का चचेरा भाई. उसके बाद उसने मुझे नाश्ता कराया और कॉफ़ी पिलाई.”

चिनॉय को विशिष्ट सेवा मेडल

नहाने और तरो-ताज़ा होने के बाद कैप्टन कहाई ने उन्हें एक जीप में बैठाकर एयरफ़ोर्स सेंटर अमृतसर की तरफ़ रवाना किया. चिनॉय इतने थके हुए थे कि जीप चलते ही वो गहरी नींद में चले गए. उनकी आँख तब खुली जब जीप एयरफोर्स सेंटर के गेट में घुस रही थी.

तभी अचानक पाकिस्तान के चार सेबर जेटों ने एयर फ़ोर्स सेंटर की रडार यूनिट पर हमला बोल दिया. इतनी मुश्किलों से बच निकलने के बाद चिनॉय का बम हमले में मरने का कोई इरादा नहीं था. उन्होंने दौड़कर बमों से बचने के लिए एक बंकर में शरण ली.

अमृतसर के स्टेशन कमांडर ने उन्हें अपनी जीप से आदमपुर के वायुसेना ठिकाने पर ड्रॉप करवाया.

जब चिनॉय आफ़िसर्स मेस में घुसे तो उनके साथियों का चेहरा देखने लायक था. अगले दिन उनका मेडिकल टेस्ट हुआ और उन्हें फिर से उड़ान भरने के लिए उपयुक्त करार दिया गया.

23 सितंबर को भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम हो गया. उस समय चिनॉय के भारत वापस आने की ख़बर को छिपा कर रखा गया था.

युद्ध समाप्त होने के तीन महीने बाद 1 जनवरी, 1966 को तत्कालीन वायु सेनाध्यक्ष एयरचीफ़ मार्शल अर्जन सिंह ने फ़्लाइंग आफ़िसर दारा फ़िरोज़ चिनॉय को पाकिस्तान से बचकर सुरक्षित भारत आने के लिए विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया.

चिनॉय ने बाद में भारतीय वायुसेना में ग्रुप कैप्टन होकर रिटायर हुए. इस समय वो बैंगलुरु में अपनी पत्नी मार्गरेट के साथ रहते हैं.

sabhar-bbc

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