दुनिया

विश्व मुस्कुराहट दिवस : हमारी मुस्कुराहट दूसरों पर निर्भर है

Published

on

हमारी खुशियां दूसरों पर निर्भर क्यों होती हैं? हमारा सब कुछ ही दूसरों पर निर्भर क्यों है? क्या हमारे दु:ख दूसरों पर निर्भर नहीं हैं? कोई आकर हमें हंसा सकता है तो कोई आकर के हमें रुला भी तो सकता है। हमारा अपना है क्या? उदास होना, उत्तेजित होना, ऊबना, यहां तक कि आकांक्षाएं भी दूसरों से हैं।

हमारी खुशियां दूसरों पर निर्भर क्यों होती हैं? हमारा सब कुछ ही दूसरों पर निर्भर क्यों है? क्या हमारे दु:ख दूसरों पर निर्भर नहीं हैं? कोई आकर हमें हंसा सकता है तो कोई आकर के हमें रुला भी तो सकता है। हमारा अपना है क्या? उदास होना, उत्तेजित होना, ऊबना, यहां तक कि आकांक्षाएं भी दूसरों से हैं।

हम दूसरों के प्रभावों के अलावा हैं क्या? हमारा अपना कुछ है कहां? जब अपना कुछ नहीं होता, उसी स्थिति को गुलामी कहते हैं। आप जो कुछ भी सोचते हैं कि पाकर के जिंदगी जीने लायक बनती है, आप देखो न उसे पाने की हसरत दूसरों से ही है। कोई पैसा दे दे, कोई प्रतिष्ठा दे दे, कोई नौकरी दे दे, कोई प्रेम दे दे। अपनी हालत कैसी है? मांगने वाले की जैसी, कहीं और से मिलेगा, कोई बाहर वाला दे देगा।

कुछ ऐसा भी है जिसको कहते हैं कि कहीं से न मिले तो भी आपके पास है? कुछ ऐसा भी है जिसको कहते हो कि देने वाले का धन्यवाद कि उसने दिया ही है? हमारे भीतर ऐसा कोई भाव ही नहीं होता कि मिला है। इसलिए हमारे भीतर कृतज्ञता नहीं होती, बस शिकायतें होती हैं। कभी आपने गौर किया है कि हम शिकायतों से कितना भरे हुए हैं?

हर समय हमारे भीतर एक निराशा, एक कुंठा, एक विद्रोह उबलता-सा रहता है। लगातार ये लगता रहता है कि जाकर के कहीं व्यक्त कर दें कि धोखा हुआ। एक खालीपन का भाव रहता है न? सूनापन। ये लगता ही नहीं है कि मिला है कुछ। जब ये नहीं लगता है कि कुछ मिला है तो लगातार खड़े रहते हो पाने के लिए-तू दे दे, तू दे दे।

आप अगर कभी गौर करें कि हमारा सूनापन कितना घना है तो हैरत में पड़ जाएंगे। सडक़ पर चल रहे हैं। एक आदमी आता है जिसे आप जानते नहीं।उससे भी अभिलाषा रहती है कि वो आपको थोड़ी-सी स्वीकृति दे ही दे। आप सडक़ पर चल रहे हो और कोई देखे ही न, तो बहुत बुरा लगेगा। आप अनजान लोगों से भी मान्यता चाहते हैं, ऐसा हमारा खालीपन है। आप कोई नया कपड़ा पहनें और कोई रिएक्शन ही न करे, आपको पसंद नहीं आएगी ये बात?

अपने अंदर बढिय़ा होने का भाव रखें

जब भी आपके भीतर ये विचार उठे कि दुनिया से कुछ पाना है, कुछ अर्जित करना है, नाम को बड़ा करना है तो तब ये स्मरण करें कि हासिल किए बिना भी आप बहुत कुछ हैं, जो असली है वो आपको मिला हुआ है। उसके लिए आपको किसी के प्रमाण-पत्र की जरुरत नहीं है। दुनिया से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है कि ‘मैं कुछ हूं या नहीं हूं।’ दुनिया की नजरों में आप कुछ तभी हो पाएंगे जब आप दुनिया के अनुसार काम करेंगे। एक ठसक रखें अपने भीतर कि ‘जैसे भी हैं, बहुत बढिय़ा हैं।’ यह अहंकार की बात नहीं है, यह श्रद्धा की बात है। ‘अस्तित्व मेरा हठ है’, कि ‘यदि हूं तो छोटा या बुरा या निंदनीय नहीं हो सकता।’

उम्मीद करने से बचें

आपको किसी से उम्मीद थी कि वो आज कुछ उपहार देगा। उसने नहीं दिया; आपके मन में उसके लिए सद्भावना उठेगी? या क्रोध उठेगा? उम्मीद टूटी। सुख की सबसे ज्यादा उम्मीद उन लोगों से करते हैं जिनसे आपको तथाकथित प्रेम का रिश्ता है। उन्हीं से तो आप कहते हैं न कि ये जिन्दगी में सुख देंगे, खुशी मिलेगी। बाद में रिश्ता हिंसक भी बनता है।
अपनी सच्चाई को जानें

इंसान का कष्ट है कि उसको आत्मा मिली नहीं है। ‘मैं’ की उपलब्धि नहीं हुई है—इसके अलावा कोई कष्ट नहीं होता है। इसीलिए जानने वालों ने कहा है कि संसार दु:ख है। उन्होंने ये नहीं कहा है कि संसार में कोई दु:ख है। संसार में दु:ख तब है जब आप संसार के सामने याचक की तरह खड़े हैं। संसार में दु:ख तब है जब आप नहीं हैं, संसार है और संसार से अपने आप को इक_ा करना है, निर्मित करना है, टुकड़ा-टुकड़ा। तब संसार दु:ख है, अन्यथा संसार दु:ख नहीं है।

अकेलापन का भाव नहीं रखें

इंसान अकेला है जिसे ये लगता है कि वो ठीक नहीं है। अपने भीतर से ये भाव निकाल दें कि ‘मैं ठीक नहीं हूं।’ ये हीनता हमारे भीतर बहुत गहरी बैठ गई है। सूरज अपनी जगह पर है, मिट्टी अपनी जगह पर है, सब अपनी जगह पर और खुश हैं। कोई अड़चन नहीं है। आउट ऑफ प्लेस कुछ भी नहीं है, तो आप ही कैसे अकेले हो सकते हैं?

प्राकृतिक सुंदरता देखें
आप सुंदर पक्षियों की तो बात करते हैं, कहते हैं, ‘बड़े सुंदर ह’, सुंदर जानवरों की बात करते हैं। पर जिनको आप सुंदर नहीं भी कहते, मान लो कोई घिनौना सा कीड़ा है तो क्या उसके भीतर भी ये हीनता होती है कि ‘मैं कुछ और बन जाऊं?’ वो मिट्टी में पड़ा रहता है। इसलिए प्रकृति ने जो भी बनाया है, जैसे बनाया है। बहुत सुंदर है। ऐसा भाव रखें।

कृतज्ञता का भाव बनाए रखें
जो उपहार मिला है उसके लिए कृतज्ञता रखें। मनुष्य रूप ही बहुत बड़ी चीज है जो उपहार स्वरूप मिला है। जब आपके पास वो समझने की काबिलियत है तो फिर जिंदगी कैसे बितानी है? संसार को देख-देख कर या फिर इस समझ पर? अगर देखा-देखी और उन्हीं पर आश्रित रह कर जीवन बिताना होता तो आपके भीतर समझ दी ही क्यों जाती? अगर ऐसा सही है तो आपको तो मशीन होना चाहिए था कि जैसे सब चल रहे हैं वैसे ही। सारी मशीनें एक जैसी चलती हैं। पर आपमें कुछ ऐसा दिया गया है जो अद्भुत और विलक्षण है कि आप जान सकें, पहचान सकें और समझ कर अच्छे से जी सकें।

आचार्य प्रशांत, वेदांत मर्मज्ञ, संस्थापक, प्रशांतअद्वैत संस्था

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Trending

Exit mobile version