Rajasthan Election 2023: राजस्थानके चुनावी क्षेत्र शेखावाटी में तीन जिले की 21 विधानसभा सीटें हैं। यहां का मतदाता किसी पार्टी का सगा नहीं है। स्थानीय मुद्दों और प्रत्याशियों के हिसाब से मतदाता हर चुनाव में अपना रुख बदलता है। विस्तार जानिए यहां के सियासी समीकरण…।
Rajasthan Election: चुनावी दंगल के लिए राजस्थान तैयार है। 25 नवंबर को यहां मतदान होना है। इससे पहले कांग्रेस और भाजपा समेत सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी सियासी चाल चल रहीं हैं। भाजपा ने 41 सीटों पर प्रत्याशियों का एलान कर दिया है, जबकि कांग्रेस अभी भी मंथन में जुटी हुई हैं। आज-कल में कांग्रेस भी अपने प्रत्याशी घोषित कर सकती है।
चुनावी लिहाज से राजस्थान को पांच क्षेत्रों में बांटा जाता है। जिसमें शेखावाटी, मारवाड़, मेवाड़, हाड़ौती और ढूंढाड़-मत्स्य-मेरवाड़ा शमिल हैं। ऐसे में हम आपको राजस्थान के इन चुनावी क्षेत्रों के सियासी गणित के बारे में बताएंगे। सियासी समीकरण की पहली सीरिज में हम बात करेंगे शेखावाटी क्षेत्र की। आइए, इसे समझते हैं…
शेखावाटी क्षेत्र में कितने जिले और कितनी सीटें? शेखावाटी में सीकर, चुरू और झुंझुनूं समेत तीन जिले आते हैं। यहां विधानसभा की 21 सीटें हैं। चुरू जिले में 6 सीटें आती हैं, इनमें चूरू, सुजानगढ़, सरदारशहर, रातनगढ़, तारानगर और सादुलपुर विधानसभा सीट शामिल हैं। झुंझुनूं जिले में सात विधानसभा सीटें हैं। इनमें खेतड़ी, मंडावा, झुंझुनूं, नवलगढ़, उदयपुरवाटी, पिलानी और सूरजगढ़ शामिल हैं। इसी तरह सीकर जिले में आठ विधानसभा सीटें हैं। इनमें नीमकाथाना, दांतारामगढ़, लक्ष्मणगढ़, खंडेला, सीकर, धोद, श्रीमाधोपुर और फतेहपुर विधानसभा सीट है।
2018 में भाजपा को मिलीं थीं सिर्फ चार सीटें पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को शेखावाटी क्षेत्र की 21 सीटों में से सिर्फ चार सीटों पर ही जीत मिली थी। एक सीट बसपा और एक सीट निर्दयलीय विधायक के खाते में गई थी। सबसे ज्यादा 15 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था।
जिलेवार सीटों के हालात
सीकर जिले की आठ सीटों की बात करें तो 2018 के चुनाव में भाजपा यहां खाता तक नहीं खोल पाई थी। सात कांग्रेस और एक सीट अन्य के खाते में गई थी। 2013 के चुनाव में भाजपा ने यहां पांच और कांग्रेस ने दो सीटें जीतीं थी। जबकि एक पर अन्य ने कब्जा जमाया था। इस लिहाज से देखें तो भाजपा को 2018 के चुनाव में सीकर जिले में तगड़ा झटका लगा था।
झुंझुनूं जिले की सात विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 2018 में चार पर जीत हासिल की थी। वहीं, भाजपा दो और बसपा एक सीट ही जीत पाई थी। इसी तरह 2013 के चुनाव में भाजपा को तीन, कांग्रेस को एक, बसपा को एक और अन्य को दो सीटों पर जीत मिली थी। पिछले चुनाव के लिहाज से 2018 में भाजपा को एक सीट का नुकसान हुआ था।
चूरू जिले की छह विधानसभा सीटों में से 2018 में कांग्रेस ने चार पर कब्जा जमाया था, जबकि भाजपा दो सीटों पर ही सिमट गई थी। वहीं, बसपा का खाता नहीं खुल पाया था। इससे पहले 2013 के चुनाव में भाजपा तीन, कांग्रेस एक और बसपा एक सीट जीती थी। एक सीट अन्य के खाते में गई थी। इस जिले में भी भाजपा को दो सीट का नुकसान हुआ था।
ये रहेंगी हॉट सीट शेखावाटी क्षेत्र की तीन सीटें हॉट सीट रहेंगी। इनसे चुरू विधानसभा सीट के अलावा सीकर जिले की लक्ष्मणगढ़ और फतेहपुर सीट शामिल हैं। ऐसा क्यों आइए जानते हैं…।
चूरू: ये सीट वर्तमान भाजपा नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ का अभेद्य किला है। वे यहां से लगातार छह बार चुनाव जीत चुके हैं। ऐसे में भाजपा उन्हें एक बार फिर इसी सीट से उतार सकती है। लेकिन, पिछले दो चुनाव में राठौड़ की जीत के अंतर को देखें तो इसमें बड़ी गिरावट आई है। 2018 के चुनाव में राठौड़ 1850 वोटों से जीते थे, जबकि 2013 में उन्होंने 24 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की थी। चर्चा है कि कांग्रेस इस सीट से मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में उतार सकती है।
फतेहपुर: भाजपा ने नए चेहरे श्रवण चौधरी को चुनावी मैदान में उतारा है। कोचिंग संचालक को टिकट देकर भाजपा ने सभी को चौंकाया है। वहीं, कांग्रेस विधायक हाकम अली का यहां से चुनाव लड़ना लगभग तय है। 2018 के चुनाव में भाजपा ने महिला प्रत्याशी सुनीता कुमारी को टिकट दिया था, लेकिन वे सिर्फ 860 मतों से चुनाव हार गईं थीं। 2013 के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही इस सीट पर हार मिली थी। निर्दलीय प्रत्याशी नंदकिशोर महरिया चुनाव जीते थे। एक दिलचस्प बात ये भी है कि 1993 के चुनाव में फतेहपुर सीट से भाजपा के भंवरलाल आखिरी बार चुनाव जीते थे। उसके बाद भाजपा यहां कमल नहीं खिला पाई है।
लक्ष्मणगढ़: कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का गढ़ है। वे यहां से लगातार तीन चुनाव जीत चुके हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने डोटासरा के सामने दिनेश जोशी को उतारा था, लेकिन वे 22052 मतों से हार गए थे। 2013 के चुनाव में डोटासरा ने सुभाष महरिया को 10 हजार वोटों से हराया था। ऐसे मे यहां एक बार फिर महरिया और डोटासरा के बीच मुकाबला तय माना जा रहा है।
1977 के बाद कांग्रेस की पकड़ हुई ढीली शेखावाटी कांग्रेस का गढ़ रहा है। 1975 तक यहां पार्टी के लिए कोई चुनौती नहीं थी। लेकिन, आपातकाल के बाद कांग्रेस की पकड़ ढीली हो गई। साल 1977 में जनता पार्टी ने सरकार बनाई और भैरोंसिंह शेखावत पहले गैर कांग्रेसी सीएम बने। इसके बाद यहां भाजपा की स्थिति मजबूत हुई। तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के साल 1999 में जाट आरक्षण की घोषणा करने के बाद पार्टी के वोट बैंक का विस्तार हुआ। लेकिन, भाजपा शेखावाटी क्षेत्र में अब तक पूरी तरह से अपनी पकड़ नहीं बना पाई है।
भाजपा ने धनखड़ को बनाया उपराष्ट्रपति भाजपा ने शेखावाटी क्षेत्र से आने वाले जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाया है। इससे पहले इसी क्षेत्र से आने वाले भैरोसिंह शेखावत भी उपराष्ट्रपति बनाए थे। इससे शेखावाटी में भाजपा का वोट बैंक बढ़ा था। अब धनखड़ के उपराष्ट्रपति बनाए जाने का फायदा भी भाजपा को यहां मिल सकता है। उपराष्ट्रपति धनखड़ राजस्थान में सक्रिय नजर आ रहे हैं। उनके दौरे पर सीएम अशोक गहलोत भी सवाल उठा चुके हैं।
तीसरा मोर्चा दोनों पार्टियों के लिए चुनौती शेखावाटी क्षेत्र में कांग्रेस-भाजपा के लिए बसपा, माकपा समेत अन्य पार्टियां चुनौती बनती नजर आ रही हैं। पिछले तीन चुनाव में 11 सीटों पर बसपा, माकपा और अन्य कब्जा जमा चुके हैं। इस चुनाव में भी इन पार्टियों समते अन्य क्षेत्रीय पार्टियां और निर्दलीय उम्मीदवार दोनों पार्टियों की राह मुश्किल कर सकती हैं।
फटाफट ये भी जान लीजिए…
जाट बहुल्य शेखावाटी को किसानों का गढ़ भी माना जाता है
यहां चुनावों में किसानों के मुद्दों के साथ-साथ स्थानीय मुद्दे भी असर डालते हैं
शेखावाटी के मतदाता केंद्र सरकर की योजनाओं को देखकर या नेताओं का भाषण सुनकर नहीं, बल्कि स्थानीय प्रत्याशी को ध्यान में रखकर वोट देता है
प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में भाजपा-कांग्रेस का चुनाव चिह्न देखकर वोट दिया जाता है, जबकि शेखावाटी में सीपीएम, बसपा और निर्दलीय उम्मीदवारों का भी उतना ही प्रभाव होता है
यहां के मतदाताओं का मूड हर चुनाव में बदलता है, हालांकि, आंकड़ों पर नजर डाले तो एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस के खाते में बढ़त दिखती है। लेकिन, अन्य पार्टियां भी अपनी जगह बनाने में पीछे नहीं हैं।