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भारत

नौ नाथों की स्थापना कैसे की गोरखनाथ ने… जानिए क्या है इस मंदिर इतिहास

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गोरखपुर एक ऐसा शहर जिसकी अपनी पुरानी पहचान और सभ्यता संस्कृति है. लोग इसे नाथ नगरी के नाम से पुकारते हैं. वहीं इसकी पहचान भी अब नाथ पंथ संप्रदाय से ही होती है. गोरखपुर का नाम लेने पर गुरु गोरखनाथ के नाम को नहीं भुला जा सकता. शहर की पहली पहचान और प्राथमिकता नाथ पंथ संप्रदाय का गोरखनाथ मठ(गोरखनाथ मंदिर) ही है. देश-विदेश के लोग गोरखपुर आने के बाद गोरखनाथ मंदिर में जाकर गुरु गोरखनाथ के दर्शन करते हैं. गोरखनाथ से नाथ संप्रदाय के नौ नाथों की स्थापना होती है.

शहर में मौजूद गोरखनाथ मंदिर नाथ पंथ संप्रदाय की एक पहचान और परंपरा का आस्था है. मंदिर में गुरु गोरखनाथ की समाधि मौजूद है. गोरखपुर यूनिवर्सिटी के हिस्ट्री के प्रोफेसर चंद्रभूषण अंकुर बताते हैं कि गुरु गोरखनाथ मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य थे. गोरखनाथ ने ही नाथ संप्रदाय के नौ नाथों की स्थापना की है. वहीं तेलुगू ग्रंथ \”नवनाथ चरित्र\” में इसका उल्लेख भी मिलता है. कहा जाता है भगवान शिव के आस्था में हर वक्त नाथ संप्रदाय लीन रहता है. गोरखपुर में मौजूद गोरखनाथ मंदिर में भी नाथ संप्रदाय के कई नाथों का चित्र वर्णन किया गया है.

12 शाखों में किए गए हैं विभक्ति
वहीं “योगीसंप्रदाय” को 12 शाखों में विभक्त भी किया गया जिसे “बारहपंथी” कहा जाता है. जिसमें भुज के कंठरनाथ, पागलनाथ, रावल, पंख या पंक, वन, गोपाल या राम, चांदनाथ कपिलानी, हेठनाथ, आई पंथ, वैराग पंथ, जैपुर के पावनाथ, घजनाथ है. इसके साथ ही गुरु गोरखनाथ ने संस्कृत और लोक भाषा मे योग संबंधित कई रचनाओं की हैं. जिसमें गोरक्ष कल्प, गोरक्ष सहिता, गोरक्ष शतक, गोरक्ष गीता, गोरक्ष शास्त्र जैसे कई रचनाओं को किया है. गोरखपुर का गोरखनाथ एक तपोस्थली के रूप में भी जाना जाता है. आज भी मंदिर के अंदर कई साल पुरानी धुनी जल रही है. जो नाथ संप्रदाय के साधुओं की पुरानी परंपरा और पहचान है.

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